युग करवट संवाददाता
गाजियाबाद। यूक्रेन के युद्घग्रस्त शहरों से आने वाले छात्रों के इंतजार में उनके अभिभावक सुबह से ही हिंडल एअरफोर्स स्टेशन के बाहर डटे रहे। सिर्फ गाजियाबाद ही नहीं, देश के विभिन्न शहरों से आए अभिभावक उस पल का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, जब उनके जिगर के लाल उनसे मिलेंगे। पहले बताया गया था कि छात्रों को लेकर आने वाला विमान सुबह छह बजे पहुंचेगा। दूर-दराज से आए अभिभावक सुबह छह बजे ही पहुंच गए थे। फिर बताया गया कि हरजोत का पासपोर्ट गुम हो जाने के कारण अब विमान चार बजे आएगा। फिर बताया गया कि उड़ान भरने में देरी के कारण विमान छह बजे आएगा। अभिभावक पूरे दिन बच्चों के इंतजार में हिंडन एअरफोर्स स्टेशन के गेट के बाहर ही बैठे रहे। इस दौरान हिंडन की ओर से जानकारी मिलती रही।
दस किमी पैदल चलकर पहुंचा
गुजरात के भरूच जिले से आई सपना मलिक और उनके पति डॉ. मलिक ने बताया कि उनकी बेटी इनल मलिक खारकीव में एमबीबीएस का कोर्स कर रही थी। जब से खारकीव में बमबारी की खबरें आने लगी, उनकी सांसे ही थम सी गईं। पहले तो बेटी से संपर्क नहीं हो रहा था लेकिन पिछले तीन दिनों से बेटी के साथ तीन बात बातें हुई। इनल ने बताया कि तीन दिन से सिर्फ बिस्कुट खाकर गुजारा किया। पीने के लिए पानी नहीं था तो बर्फ को पिघलाकर पानी पिया। सपना मलिक के मुताबिक, इनल ने बताया कि खारकीव छोडऩे की एडवायजरी मिलने के बाद पैनिक एटैक पड़ा। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें। एंबेसी से कोई सहायता नहीं मिल रही थी। तब छात्रों के एक दल ने पैदल ही पोलैंड की ओर जाने का फैसला लिया। करीब दस किमी तक पैदल चलने के बाद टे्रन मिली। फिर टे्रन से पोलैंड सीमा के पास पहुंची। वहां एंबेसी के लोग मिले।
पिछला सप्ताह सदमे में गुजरा
गाजियाबाद के राजनगर एक्सटेंशन निवासी ईशिता भी खारकीव में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी। उसकी मां और मौसी सुबह ही हिन्डन पहुंच गई थी। ईशिता की मां ने बताया कि सरकार के प्रयासों से आज बच्चे अपने घर आ गए हैं। इसके लिए विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री का विशेष धन्यवाद। उन्होंने कहा कि ईशिता से बात नहीं होने के कारण पूरा परिवार परेशान था। घर की बेटी की हालत नहीं जान पाने से पिछले कुछ दिन सदमे में गुजरा। रविवार की रात को पता चला कि ईशिता का नाम सोमवार को आने वाले छात्रों की सूची में है तो सभी के चेहरे पर खुशी लौटी। उन्होंने कहा कि ईशिता से अंतिम बार रविवार रात को बात हुई थी। उसने बताया कि खारकीव में बहुत ही बुरी स्थिति है। हर पांच मिनट में सायरन बजता था। सायरन के तुरंत बाद ही धमाकों की आवाज आने लगती थी। इस दौरान कॉलेज की ओर से कोई मदद नहीं की गई। कॉलेज ने सभी छात्रों को उनके हाल पर छोड़ दिया। दूसरे देशों से आकर पढ़ाई करने वाले छात्र मेट्रो के बेसमेंट पर रहते थे। खाने-पीने का बेहद अभाव था। सब कुछ बंद था।
खारकीव में बमबारी की खबर आते ही कलेजा फट जाता था
इस दल में हरियाणा के झज्जर जिले के छात्र हिमांशु शर्मा भी थे। हिमांशु भी खारकीव में एमबीबीएस का कोर्स कर रहा था। हिमांशु के पिता सत्यवीर शर्मा सुबह से ही बेटे की एक झलक देखने के इंतजार में खड़े थे। सत्यवीर शर्मा ने कहा कि बेटे का दूर रहना कितना कष्टïकर होता है, यह पिछले एक सप्ताह में जान पाया। जब भी टीवी पर खारकीव में बमबारी की खबर आती थी, ऐसा लगता था कि कलेजा फट जाएगा। खारकीव में रूसी सेना बमों की बारिश कर रही है। वहां फंसे छात्रों की मदद के लिए कोई नहीं आ रहा है। सरकार की ओर से खारकीव से छात्रों के लिए हवाईजहाज की व्यवस्था की गई लेकिन खारकीव से पोलैंड कैसे आए, इसका इंतजाम नहीं हुआ था। सभी बच्चे अपनी-अपनी व्यवस्था से पोलैंड पहुंची। हिमांशु भी दस किमी पैदल चलकर रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां से किसी तरह ट्रेन में सवार होकर पोलैंड के करीब के एक शहर पहुंचे। वहां से फिर पोलैंड सीमा पर पहुंचे। जहां भारतीय एंबेसी के अधिकारी मौजूद थे।