मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक पिछले कुछ दिनों से जो, जैसा और जितना बोल रहे हैं, उसको पढऩे-सुनने के बाद, उनको पद पर बने रहते देखना आश्चर्य की बात है। अपने बयानों में उन्होंने किसानों को लेकर केंद्र सरकार को नसीहत भी दी है, खुलकर तमाम तरह की आलोचनाएं भी की हैं। गवर्नर साहब का यह आचरण भाजपा को किसी भी स्थिति में प्रिय तो हो नहीं सकता है। फिर भी मलिक अपनी कुर्सी पर जमे हुए हैं, इसके पीछे कोई तो कारण होगा।
किसी भी नेता या अनेता को राज्यपाल बनाने की सिफारिश प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से करते हैं और राष्ट्रपति उस पर सहमति की मोहर लगा देते हैं। कहने का मतलब यह कि राज्यपाल प्रधानमंत्री के परिचित ही नहीं चहेते भी होते हैं। लेकिन इतना ज्यादा चहेते भी नहीं होते कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के विरुद्ध टिप्पणी पर टिप्पणी करते रहें और कुर्सी पर भी बने रहें। तो क्या यह मान लिया जाए कि सत्यपाल मलिक जो बोल कह रहे हैं, उसमें प्रधानमंत्रीजी की सहमति है। यदि सहमति नहीं है, तब कोई-न-कोई तो ऐसी मजबूरी जरूर है, जिसके चलते प्रधानमंत्री अति मुखर मलिक जी को बर्दाश्त कर रहे हैं। कोई तो लोचा जरूर है।
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा- ‘देश में इतना बड़ा आंदोलन आजतक नहीं चला, जिसमें 600 लोग मर गए। जानवर भी मरता है तो दिल्ली के नेताओं का शोक संदेश आ जाता है, लेकिन 600 किसानों के मरने पर प्रस्ताव लोकसभा में पास तक नहीं हुआ। महाराष्ट्र में आग से 5-7 लोग मरे और दिल्ली से प्रस्ताव आ गया उनके पक्ष में, हमारे 600 लोग मरे उन पर कोई नहीं बोला।Ó
सत्यपाल मलिक ने पिछले दिनों यह भी बोला था-‘पहले दिन जब मैं किसानों के पक्ष में बोला था, तो यह तय करके बोला था कि मैं यह पद छोड़ दूंगा और किसानों के साथ धरने पर जाकर बैठ जाऊंगा।’ मेघालय के गवर्नर किसानों के हमदर्द सत्यपाल मलिक ने यह भी कहा था ‘राज्यपाल को हटाया नहीं जा सकता, फिर भी मेरे शुभचिंतक इस तलाश में रहते हैं कि यह बोले और हटे। कुछ फेसबुक पर लिख देते हैं – गवर्नर साहब जब इतना महसूस कर रहे हैं तो त्यागपत्र क्यों नहीं दे देते। मैंने कहा-आपके पिताजी ने बनाया था मुझे? मुझे बनाया था, दिल्ली में दो-तीन लोग हैं, उन्होंने। मैं उनकी इच्छा के विरुद्ध बोल रहा हूं। यह तो जानकर ही बोल रहा हूं कि उनको दिक्कत होगी। वह जिस दिन कह देंगे उन्हें मेरे बोलने से दिक्कत है उस दिन एक मिनट भी नहीं लगाऊंगा और पद छोड़ दूंगा।’ अब बड़ा सवाल यह उठता है कि मोदी जी सत्यपाल मलिक से त्यागपत्र क्यों नहीं मांग रहे हैं? आखिर मजबूरी क्या है? इंडिया वांट्स टू नो! (बाकी कल)