मुझे सेहरा अधिक समझ नहीं आता । मर्सिया तो बिलकुल नहीं आता। हालांकि गाहे बगाहे कानों तक दोनो की आमद होती ही रहती है। दु:ख की पराकाष्ठा तो तब होती है जिसका सेहरा सुना हो उसी का मर्सिया भी सुनना पड़े और वह भी मात्र सात साल के भीतर। वैसे सेहरा पढऩे का तो अब रिवाज़ ही नहीं रहा। एक जमाना था जब शादी में दूल्हे के सम्मान में भरी महफिल में बड़ी शान ओ शौकत से सेहरा पढ़ा जाता था और दूल्हे की तमाम सिफतों के साथ साथ उसके खानदान के एक एक बंदे की सलाहियत का ढिंढोरा पीटा जाता था। हालांकि आमतौर पर फूफा, मामा अथवा मौसा ही सेहरा लिखते थे मगर जिनके घरों में अदब का घाटा होता था वे लोग भाड़े पर किसी शायरनुमा आदमी से सेहरा लिखवा कर छपवाते थे और हरेक बाराती और घराती को बड़े प्यार से भेंट करते थे। सेहरा सुनने की आदत छुट सी गई है और आखरी बार सेहरा सुना था हाल ही में दिवंगत हुए दो हज़ार के नोट का। मगर अफसोस! अब उसी दो हज़ार के नोट का मर्सिया कानों में पिघला सीसा घोल रहा है।
नवंबर 2016 का कोई दिन था जब यह दूल्हा यानी दो हज़ार का नोट घोड़ी चढ़ा था। चूंकि वह दूल्हा था इसलिए उसके सेहरे भी खूब गाए गए थे। दूल्हे के रिश्तेदारों ने कम और किराए के मिरासीनुमा टीवी एंकर अधिक बलिहारे गए थे। वो सब भी कह दिया गया जो मरियल सा यह दूल्हा दस जन्म में भी नही कर सकता था। नतीजा कम उम्र में ही वह चल बसा और अब चारों ओर से मर्सिया की आवाजें कानों में उतर रही हैं। चलिए चल बसा तो चल बसा मगर दिक्कत यह है कि सेहरे के वक्त की गईं बातें बराती-घराती सबको याद हैं और लोग बाग उन्हें लेकर चुटकुले छोड़ रहे हैं। कोई पूछ रहा है कि नोट में लगी चिप का क्या करें तो कोई कह रहा है कि नोट में लगा जीपीएस कब तक काम करेगा? किसी को 120 फुट नीचे दबे नोट की चिंता सता रही है तो कह रहा है कि नैनो चिप अभी एक्टिव है या चल बसी? अपनी तो समझ नहीं आ रहा कि मियां जब तुम्हारा लौंडा ही बेदम था तो बैंड बाजे के साथ घोड़ी ही क्यों चढ़ाया था? पहले चढ़ाया और अब घोड़ी से उतार कर कब्र में भी लिटा दिया? वो भी इतनी जल्दी? कम से लोगों के फोनों से डिजिटल इंडिया, ब्लैक मनी, आतंकवाद पर अंकुश और नकली नोटों पर लगाम जैसे वीडियो तो डिलीट होने देते? सेहरों की धुन हवाओं में कहीं गुम तो होने देते? चलिए छोडि़ए। आपका लौंडा था आपने जो ठीक समझा वो किया मगर कम से कम यह तो बता दो कि तुम्हारे छोटे लड़के यानी पांच सौ के नोट का भी तो मर्सिया नहीं पढऩा पड़ेगा? बड़े मियां बुरा मत मानिए मगर डर तो लगता ही है। सबको चौंकाने की अपनी अदा में आप कब क्या कर बैठो, पता भी तो नहीं चलता। मियां भौचक्का सच कह रहा हूं आपकी हरकतों से मैं ही नहीं पूरा मोहल्ला ही डरा हुआ है और हर कोई दो हजार ही नहीं उसके छोटे भईया पांच सौ के नोट को भी हाथ लगाने से डर रहा है।