मणिपुर की घटना
मणिपुर में जिस तरह महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाया गया, बलात्कार की खबर है ऐसी घटना से पूरी व्यवस्था शर्मसार हो गई। आखिरकार हम बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं, नारी शक्ति को ताकत देने के दावे करते हैं लेकिन अफसोस व्यवस्थाओं को संभालने वाले इस ओर क्यूं ध्यान नहीं दे रहे हैं कि आज की नारी के साथ वहशीपन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट के सीजीआई द्वारा की गई टिप्पणी इस बात का संकेत है कि व्यवस्थाएं बस केवल और केवल कागजों तक ही सीमित है। जमीनी तौर पर कुछ भी नहीं हो रहा है। संसद में भी मणिपुर को लेकर बवाल हुआ। इसको भी राजनीति से जोडक़र देखा जा रहा है। जिस तरह से महिलाओं के साथ बर्ताव हुआ है वास्तव में सिर शर्म से झुक गया है। हम चन्द्रयान तक पहुंच गये और खुशी की बात ये है कि चन्द्रयान तक पहुंचने में महिला शक्ति की अहम भूमिका रही लेकिन अफसोस इस बात है कि आज भी बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहे हैं। जो घटनाएं सामने आ जाती है उन पर सुप्रीम कोर्ट खुद संज्ञान ले लेता है, अखबारों की सुर्खियां बन जाती है। जो घटनाएं सामने नहीं आती और जिन महिलाओं के साथ इस तरह की घटनाएं होना वो हमेशा डरी रहती है। मीडिया भी आज अपनी जिम्मेदारी से भटक गया है। केवल और केवल एक दूसरे के समुदायों को लड़ाने के अलावा उसके पास कोई खबर नहीं होती। यदि दो समुदायों में व्यक्तिगत झगड़ा भी होता है तो उसे मीडिया संप्रदायिक रंग देने से पीछे नहीं रहता है। इन महिलाओं के साथ या किसी भी महिला के साथ कोई घटना हो जाये तो मीडिया भी अपनी जबान बंद रखता है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि सख्त से सख्त कानून बने, जिनके ऊपर व्यवस्था बनाएं रखने की जिम्मेदारी उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए ताकि घिनौनी हरकत करने की सपने में भी ना सोचे। इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होना चाहिए। सबको एक मंच पर आकर सख्त से सख्त कानून बनाकर कार्रवाई होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के सीजीआई की टिप्पणी अपने आप में इस बात का संकेत है कि व्यवस्था संभालने वाले खुद कोई जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। इस घटना की जितनी भी निंदा की जाये कम है। दिल्ली की घटना के बाद न जाने कितनी ऐसी घटनाएं हो गई लेकिन अफसोस इस बात है कि हम हर घटना के बाद बड़े-बड़े दावे करते हैं और फिर कुछ दिनों बाद सब बातें भूल जाते हैं और फिर दिल दहलाने वाले कोई न कोई घटना सामने आ जाती है। जय हिंद