अभी हाल ही में हापुड़ जनपद के पिलखुवा में एक व्यापारी पर हमला किया गया। व्यापारी का आरोप था कि स्थानीय विधायक के ड्राइवर ने उनसे रंगदारी की मांग की इसी वजह से उन पर हमला भी किया गया। पुलिस ने व्यापारी की शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज कर ली। उसके बाद पिलखुवा थाना प्रभारी को हटा दिया गया। नए थाना प्रभारी के आने के बाद इस मामले में कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाई। पिलखुवा ही नहीं बल्कि हापुड़ और गाजियाबाद के व्यापारियों में भी इस मामले की चर्चा होने लगी है। लोग सवाल उठाने लगे हैं कि क्या कोई पुलिस को कार्रवाई करने से रोक रहा है। इस मामले में गाजियाबाद में रहने वाले एक जनप्रतिनिधि का नाम भी लिया जाने लगा है। लोग कह रहे हैं बड़े सदन के सदस्य की एंट्री भी विधायक पक्ष की ओर से हो रही है। हालांकि इस बात कोई साक्ष्य तो नहीं है। मगर लोगों में जिस तरह से जनप्रतिनिधि का नाम चल रहा है उससे हैरानी हो रही है। स्थानीय विधायक का तो अपने ड्राइवर की सिफारिश करना समझ में आता है। मगर गाजियाबाद के जनप्रतिनिधि का इस तरह दखल देना लोगों की समझ से परे हो चला है। लोग यह भी समझने का प्रयास कर रहे हैं कि इस घटना के बाद पिलखुवा थाना प्रभारी को विधायक के ड्राइवर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने पर हटाया गया है या फिर रिपोर्ट दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी नहीं करने पर? अगर गिरफ्तारी नहीं करने पर हटाया है तो उसके बाद भी अब तक आरोपी बाहर कैसे है? पीडि़त व्यापारी पर भी कई तरह के आरोप लग रहे हैं। मगर सवाल यह है कि किसी नेता या जनप्रतिनिधि का चालक होने भर से उसे इस तरह से मारपीट करने का अधिकार दिया किसने? हापुड़ पुलिस को इस मामले में त्वरित कार्रवाई करके जनता को संदेश देना चाहिए था कि पुलिस किसी के साथ भेदभाव नहीं करती। आदमी कितना भी पहुंच वाला क्यों ना हो गलत करेगा तो सजा भुगतेगा। मगर राजनेताओं से जुड़े इस मामले में हापुड़ पुलिस ऐसा कोई संदेश नहीं दे पाई। अगर सांसद और विधायक का इतना ही दबाव पुलिस पर है तो एफआर लगाकर खत्म कर दीजिए यह मुकदमा। करने दीजिए उसको मनमानी। इससे उसके हौसले और अधिक बढ़ जाएंगे फिर आज नहीं तो कल वह कोई दूसरी हरकत करेगा। क्योंकि बचाने के लिए तो नेता जी हैं हीं।