पार्टी ने मेहनत और योग्यता देखकर भेजा था राज्यसभा
आशित त्यागी
गाजियाबाद (युग करवट)। लंबे समय तक गाजियाबाद प्राधिकरण में काम करने के बाद अनिल अग्रवाल ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश किया। फिर शिक्षक सीट पर एमएलसी का चुनाव लडक़र राजनीति में पर्दापण किया। इससे पहले कई खेल संस्थाओं में बड़े-बड़े पदों पर रहे। आज भी कई खेल संस्थाओं के साथ काम कर रहे हैं। शिक्षण संस्थान चला रहे हैं। अब उनकी नजर अगले लोकसभा चुनाव में गाजियाबाद सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर है। एक सरकारी कार्यक्रम में उपेक्षा के कारण बहुत चर्चित रहे थे। राजनीति में आने, राज्यसभा सदस्य बनने और भविश्य की योजनाओं को लेकर युग करवट ने उनसे विशेष बातचीत की।
ह्न राजनीति की शुरूआत कब से, कहां से और कैसे हुई?
-पारिवारिक पृष्ठभूमि का भी असर रहा। सामाजिक कार्यों में पहले से ही रूचि रही थी। राजनीति का मतलब ही समाज सेवा करना है। सामाजिक रूप से हमेशा सक्रिय रहा। कई खेल संघों और संस्थाओं में काम किया, अभी भी कर रहा हूं। वर्ष 2012 में पूरी तरह से राजनीति में काम करने लगा। वर्ष में स्नातक सीट पर एमएलसी का चुनाव लड़ा। उन दिनों इस सीट पर दिवंगत ओमप्रकाश शर्मा का वर्चस्व रहा करता था। उसके बाद भी मात्र 400 वोटों से चुनाव हारा। हमने उनके मिथक को तोड़ा था। उस समय तक पार्टी अपने स्तर पर इस चुनाव को नहीं लड़ती थी। मेरे चुनाव परिणाम के बाद ही पार्टी ने इस चुनाव पर ध्यान दिया।
ह्न राज्यसभा सदस्य बनना कैसे तय हुआ, किसी से सिफारिश की या पार्टी ने ही चयन किया था
– वर्ष 2014 का शिक्षक स्नातक चुनाव लडऩे के बाद पार्टी ने मेरी योग्यता समझी और वर्ष 2018 में राज्यसभा भेजा। वर्ष 2021 के शिक्षक एमएलसी चुनाव में मुझे संयोजक बनाया गया। हमारे प्रत्याशी श्रीचंद शर्मा थे। मेरे संयोजन में पहली बार भाजपा को इस चुनाव में जीत मिली। तो राज्यसभा मुझे मेरी योग्यता पर पार्टी ने दी थी, मुझे ऐसा लगता है।
ह्न राज्यसभा सांसद बनने से पहले और उसके बाद जिंदगी में क्या बदलाव आए
– बहुत ज्यादा तो नहीं पर हां व्यस्तता बढ़ी है। लेकिन खुशी इस बात की है कि अब ज्यादा लोगों की सेवा और सहायता करने का मौका मिलता है। सभी जानते हैं ज्यादातर राज्यसभा सदस्य जनता से बहुत मिलते जुलते नहीं हैं। लेकिन मैं हमेशा लोगों से मिलता हूं। गाजियाबाद के लोकसभा सांसद से ज्यादा मैं क्षेत्र में सक्रिय रहता हूं, उनसे ज्यादा काम भी करता हूं।
ह्न राज्यसभा सांसद के तौर पर अपनी निधि से क्या काम आपने कराए हैं?
– किसी काम पर हमारा कोई अधिकार नहीं, सभी कार्यों का श्रेय पार्टी को ही जाना चाहिए। वैसे मैंने बहुत से खेल के मैदानों का विकास कराया है। कितनी ही हाईमास्क लाइटें लगवाई हैं, ओपन जिम शुरू कराए हैं, कितनी ही सडक़ो का कार्य कराया है।
ह्न सुना है कि आप लोकसभा चुनाव लडऩे की भी तैयारी कर रहे हैं, टिकट के लिए किसी का आश्वासन मिला है या खुद पर ही यकीन है?
देखिए पार्टी की नीति स्पष्टï है। यहां पहले देश फिर दल और फिर खुद की बारी आती है। मैं भी इसी सिद्घांत को मानता हूं। क्या देना है यह पार्टी को तय करना है। पार्टी ने राज्यसभा सदस्य बना कर बहुत बड़ा मान-सम्मान दिया है। पार्टी का सिपाही हूं जो दायित्व पार्टी तय करेगी उसे निभाया जाएगा। पार्टी बेहतर समझती है किसे क्या देना है।
ह्न गाजियाबाद के लोकसभा सांसद वीके सिंह के बारे में आपकी क्या राय है?
– हर आदमी का काम करने का तरीका अलग होता है। वीके सिंह की पृष्ठभूमि सेना से है। अभी भी उनके व्यवहार में सेना का असर झलकता है। लेकिन बात यह भी सही है कि वह इसमें सुधार करने की कोशिश कर रहे हैं। फौज से उनका रिटायरमेंट तकरीबन 60-62 वर्ष की उम्र में हुआ होगा। उनकी उम्र को लेकर अदालत में मामला चला था। अब अगले वर्ष चुनाव के समय तक वह 71-72 वर्ष के हो चुके होंगे।
ह्न गाजियाबाद के नागरिक के तौर पर क्या आप सांसद वीके सिंह के कामकाज से संतुष्टï हैं?
वैसे तो मुझसे यह प्रश्न तर्कसंगत नहीं है। लेकिन इस सवाल का जवाब जनता बेहतर बताएगी। पार्टी के लोग तो सभी की सराहना करते हैं। मगर असली बात जनता बताएगी कि किसने ज्यादा काम किए हैं।
ह्न क्या आप अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं?
– नहीं, बिलकुल भी नहीं। वह कॉलेज चला रहे हैं। कई खेल संस्थाओ से जुडक़र उनका संचालन कर रहे हैं। मैंने अपने बेटे को राजनीति में लाने का कभी प्रयास नहीं किया। वह अपने क्षेत्र में सक्रिय भी है और व्यस्त भी, वह अपना काम कर रहे हैं।
ह्न विपक्ष एकजुट हो रहा है क्या लगता है चुनाव प्रभावित होगा?
– देखिए विपक्ष जोड़-तोड़ की राजनीति कर रहा है। चुनाव से पहले गठबंधन होता है और बाद में टूट जाता है। जानता जानती है कि यह गठबंधन केवल जनता की वोट लूटने के लिए होता है। जोड़-तोड़ से जनता को कुछ नहीं मिलता। पटना में क्या हुआ सबने देखा है। केजरीवाल औा भगवंत मान अगल चले गए, स्टालिन की अलग खिचड़ी पक रही थी। बंगाल में कांग्रेस ममता बनर्जी के सामने चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही है। यूपी में कितने गठबंधन जनता देख चुकी है। सपा के कार्यकाल में केवल अपने परिवार और कुछ सजातीय लोगों का भला किया गया। बिजली नहीं आती थी, सडक़े खराब थीं, अपराध चरम पर था। लेकिन योगी सरकार में शांति है विकास है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक केवल भारत में नहीं हैं। बाइडन, पुतिन जैसे कई राष्टï्राध्यक्ष हैं। ऐसा कौन सा क्षेत्र है जिसमें मोदी सरकार ने काम नहीं किया है। किसान सम्मान निधि, आयुष्मान कार्ड, उज्जवला योजना सभी काम आथिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए हैं। विपक्ष इस समय एजेंडा विहीन है। एजेंडे के बिना कोई दल सफलता हासिल नहीं कर सकता। पहले गठबंधन सत्ता पाने के लिए हुआ करते थे। पहली बार देखा गया है कि गठबंधन पीएम मोदी को हटाने के लिए हो रहा है।
ह्न लेकिन यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटें कम हो गई थीं, लोकसभा में भी तो ऐसा नहीं हो जाएगा
-मतलब ही नहीं है, अभी बताया ना विपक्ष बिना एजेंडे के है। ना नेता का पता है ना चेहरे का। कांग्रेस चाहती है राहुल गांधी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाए। नितिश कुमार की अपनी इच्छाएं हैं। वह बिहार में अपनी ही पार्टी का वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। तेजस्वी चाहते हैं कि वह सीएम बन जाएं। नितिश की इच्छा है कि वह पीएम बन जाएं। अरविंद केजरीवाल भी अलग महत्वाकांक्षा पाले बैठे हैं। बीस-बीस सीट वाले दल पांच सौ तैतालीस सीटो वाली लोकसभा में सत्ता चाहते हैं, यह अपने आप में ही हास्यास्पद है। भाजपा 51 प्रतिशत की राजनीति कर रही है। भाजपा के पास चेहरा भी है, नीति भी है, योजनाएं भी हैं, उपलब्धियां भी हैं, एजेंडा भी है और बूथ पर कार्यकर्ता भी हैं। इसलिए मैं यकीन से कह सकता हूं कि वर्ष 2019 के मुकाबले अगले चुनाव में भाजपा कहीं ज्यादा सीटें जीतकर आएगी।