करीब तीन महीने से एक परिवार अपने एक सदस्य का इंतजार कर रहा है। तीन महीने का समय कोई कम नहीं होता। मगर गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट के लिए तीन महीने शायद कुछ नहीं होते, यदि ऐसा होता तो अनिल त्यागी का कुछ तो पता चलता। समझ ही नहीं आ रहा है कि अनिल त्यागी को धरती खा गई या आसमान निगल गया। 11 मई को अनिल त्यागी सिहानी स्थित अपने घर से बिलकुल ठीक निकले थे। वह नोएडा गए वहां गाड़ी खड़ी की। शायद कुछ काम भी किया। यहां अनिल एक सीसीटीवी की फुटेज में दिखाई भी दे रहे हैं। उसके बाद ना गाड़ी का पता है ना अनिल का। गाजियाबाद की तेजतर्रार पुलिस इस मामले में फेल क्यों साबित हो रही है, इसका जवाब गाजियाबाद पुलिस कमिश्नर को देना चाहिए। क्यों हम तीन महीने से एक परिवार केे आंसू नहीं पूछ पा रहे हैं। क्या थाना पुलिस की कोई जिम्मेदारी नहीं है? अनिल का परिवार परेशान है और लोग हैरान। समझ नहीं आता कि एक परिवार को इतनी मुश्किल में देखकर गाजियाबाद पुलिस के अधिकारी सो भी कैसे पाते हैं। इससे पहले राजनगर एक्सटेंशन से विक्रम त्यागी लापता हो गए थे उनका भी आज तक कुछ पता नहीं चल सका। आखिर ऐसे केस में पुलिस की अत्याधुनिक प्रणाली कहां गच्चा खा जाती है? अनिल त्यागी के केस में पुलिस की जांच कहां जाकर रुक जाती है? क्या पुलिस जानबूझ कर कोई तथ्य छुपा रही है?