प्रत्याशियों की जीत का मामला
कल मैंने इसी कॉलम में लिखा था कि भाजपा का टिकट मिलने का मतलब जीत का सर्टीफिकेट है और चुनाव में हार-जीत में व्यक्ति की भी कहीं ना कहीं भूमिका होती है। लेकिन, अपने बेबाक बयानों के लिए हमेशा चर्चा में रहने वाले पूर्व मंत्री एवं नगर विधायक अतुल गर्ग का कुछ अलग ही कहना है। भाजपा के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा ‘चुनाव जीतकर आने वाले चाहे वो विधायक हों, या फिर दो बार के लोकसभा सांसद जनरल वीके सिंह, उनकी जीत में अतुल गर्ग को उनकी कोई भूमिका दिखाई नहीं दे रही है।’ उन्होंने उनकी मौजूदगी में कहा कि चाहे २०१४ का चुनाव हो, चाहे २०१७ का चुनाव हो, २०१९ का चुनाव हो या २०२२ का चुनाव, इनमें केवल और केवल प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे ही आकर्षण का केंद्र रहे हैं। इनकी बदौलत ही सभी को वोट मिले और सभी की जीत हुई। अतुल गर्ग ने कहा कि इन चुनावों के रिजल्ट देखे जाएं तो सभी में एक जैसे ही वोट आये। जाहिर है कि किसी का कोई आकर्षण नहीं, केवल और केवल मोदी जी और योगी जी ही आकर्षण हैं। हालांकि, कार्यक्रम में मौजूद पूर्व मेयर अशु वर्मा ने जरूर चुटकी ली और उन्होंने कहा ‘अतुल जी अगर आपको चुनाव लड़ा दिया जाये तो आप भी जीत जाएंगे।’ इस पर अतुल गर्ग ने कहा ‘अगर अशु जी, आपको भी टिकट दे दिया जाए तो आप भी जीत जाएंगे।’ दरअसल, नगर निगम चुनाव में सुनीता दयाल की प्रचंड जीत के बाद इस तरह की बातें सामने आ रही हैं। जिस तरह वो प्रदेश में सबसे अधिक वोटों से जीतीं, इसको लेकर कहा जा रहा है कि मेयर का टिकट किसी को भी दे देते तो वो जीत ही जाता। ये ठीक है कि आज मोदी और योगी निसंदेह आकर्षण का केंद्र हैं, लेकिन इसके साथ-साथ उम्मीदवार की अपनी छवि भी जरूर असर दिखाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो प्रदेश के कई बड़े मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के उम्मीदवार चुनाव न हारते। इसलिए इस तरह की बहस से बचना चाहिए। आकर्षण के साथ-साथ उम्मीदवार की छवि भी बहुत अहमियत रखती है और उसका भी कहीं ना कहीं जरूर प्रभाव चुनाव में दिखाई देता है।
जयहिंद