•  अगर हम अधिकारों से ज्यादा कर्तव्यों को प्राथमिकता दें तो अपराधमुक्त समाज बनने में नहीं लगेगी देर
  • अपराध एवं भयमुक्त समाज की कल्पना जनता के सहयोग के बिना नहीं की जा सकती
  • जीवन का दूसरा नाम ही टर्निग प्वॉइंट है
    प्रमुख अपराध संवाददाता
    गाजियाबाद (युग करवट)। पुलिस आयुक्त अजय कुमार मिश्रा को चुनौतियों से लडऩे और उन्हें हराने में बहुत ही आनंद आता है। उनका कहना है कि पुलिस विभाग में हर समय चुनौतियां रहती हैं। ये मालूम होने के बावजूद भी उन्होंने पुलिस विभाग ही चुना। उन्होंने बताया कि जब मैं बाल्यावस्था में था तो मुझ पर खाकी का सकारात्मक प्रभाव पडऩे लगा था और उसी समय मन ही मन यह ठान लिया था कि मुझे भी पुलिस अधिकारी बनना है। उनके पिता पुलिस विभाग में तैनात थे, इसके चलते उन्हें यह एहसास हो गया था कि पुलिस महकमा चुनौतियों से भरा है और प्रत्येक कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मी/अधिकारी के सामने हर समय चुनौतियों का पहाड़ खड़ा रहता है। इसके बावजूद उन्होंने पुलिस महकमा ही चुना, और वह इसलिये क्योंकि उन्हें चुनौतियों को हराने यानि उसके पार हो जाने में असीम आनंद आता है।
    युग करवट के सीनियर क्राइम रिपोर्टर विपिन चौधरी के साथ पुलिस आयुक्त अजय मिश्रा ने कई मुदï्दो पर बातचीत की। बातचीत के दौरान यह भी सुनिश्चित हो गया कि सख्त लहजे के आईपीएस अधिकारी अंदर से बहुत नरम हैं और हर बात को बहुत ही खुलकर सामने रखते हैं। श्री मिश्रा से जब यह पूछा गया कि उनका बचपन कहां बीता तो उन्होंने बताया कि वैसे तो उनका पैत्रक निवास स्थान बलिया ह,ै लेकिन उनका बचपन गोंडा, लखनऊ व वाराणसी में बीता। उन्होंने स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद पुलिस व अन्य सरकारी महकमे में भर्ती होने की तैयारी शुरू कर दी थी। कुछ समय बाद उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली और आईपीएस बन गये।
    अपराध पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है? तो इसके जवाब मेें श्री मिश्रा ने कहा कि क्राइम कंट्रोल के लिये सजगता, सतर्कता, सक्रियता, समन्वय और सहयोग जरूरी है। श्री मिश्रा ने कहा कि पुलिस हो या हो अपराधी, दोनों ही समाज का हिस्सा हैं। ऐसे में अगर अपराध पर नियंत्रण एवं अपराधियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाना है तो आमजन का सहयोग जरूर लेना होगा। श्री मिश्रा ने कहा कि समाज के सहयोग के बिना अपराध पर कंट्रोल पाने की बात सिर्फ कोरी कल्पना होगी। अपराध के बढऩे के पीछे के मूल कारण क्या हैं, इस सवाल के उत्तर में श्री मिश्रा ने कहा यूं तो अपराध के घटने अथवा बढऩे के अनेक कारण हैं पर उनमें से जो मुख्य कारक हैं वे हैं भौतिक माहौल, सामाजिक ताना-बाना, परिस्थितियां, क्रोध, मोह व लालच।
    अगर हम इन तत्वों को अपने ऊपर हावी ना होने दें तो इसमें कोई शक या दो राय नहीं कि अपराध तेजी के साथ घटता दिखाई देने लगेगा। कर्तव्यों के बजाय अधिकारों को अधिक प्राथमिकता देने वाली हमारी मानसिकता भी अपराधों को बढ़ावा देती है या यूं कहें कि यह मानसिकता अपराधों की जननी के समान है। श्री मिश्रा ने कहा कि अगर हम अधिकारों से ज्यादा कर्तव्यों के पालन एवं कानून के अनुपालन को प्राथमिकता देना शुरू कर देंगे तो क्राइम खुद ही कंट्रोल होता दिखाई देगा। अपनी इस बात को सिद्घ करते हुए श्री मिश्रा ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि दो दिन पहले ही पुलिस के पास किसी सज्जन ने कॉल की।
    कॉलर ने बताया कि उसके पड़ासी के यहां देर रात तक डीजे बज रहा है और उनके बच्चे की बोर्ड की कल परीक्षा है। डीजे की वजह से उनका बच्चा ठीक से पढ़ाई नहीं कर पा रहा है। श्री मिश्रा ने कहा कि इस सूचना पर जब पुलिस बताये गये स्थान पर पहुंची तो व्यक्ति ने अपने यहां वैवाहिक एवं सांस्कृतिक समारोह के आयोजन का हवाले देते हुए हुए कहा कि क्या उन्हें ऐसी खुशियों के अवसर भी डीजे बजाने का अधिकार नहीं है? श्री मिश्रा ने कहा कि अगर वह व्यक्ति बस यह सोच लेता कि उसकी खुशियां दूसरे के दुख का कारक बन सकती हैं और एक बच्चे की जिन्दगी अंधकारमय हो सकती हैं, तब ना तो कोई विवाद होता और ना पुलिस को बिना वजह दौड़ लगानी पड़ती।
    आमजन को पुलिस से बहुत अपेक्षाएं होती हैं? जब इस संदर्भ में पुलिस आयुक्त से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हां, यह बात सही कि लोगों को पुलिस से काफी उम्मीद होती है, लेकिन कई बार लोगों की यही अपेक्षा और कानून के प्रति अनभिज्ञता पुलिस की गतिशीलता को शिथिलता की ओर ले जाने लगती है। उन्होंने कहा कि लोग पुलिस से वे कार्य भी करवाना चाहते हैं जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होते हैं। जीवन का दूसरा नाम ही टर्निंग प्वॉइंट बोले तो बदलाव है, यह कहना है पुलिस आयुक्त अजय मिश्रा का। उन्होंने कहा कि प्रकृति से लेकर जीव-जन्तुओं तक ऐसा कोई पल नहीं होता जब कोई ना कोई बदलाव न होता हो। यह बात इंसान पर भी पूरी तरह से लागू होती हैं।
    श्री मिश्रा ने कहा कि उनके जीवन में भी अनेक क्षण ऐसे आये जिन्होंने उन्हें नई दिशा एवं नई दशा दी। गाजियाबाद कमिश्नरेट का सीपी बनने के बाद पुलिस की उप्लब्धियां क्या-क्या रहीं? जब इस बाबत श्री मिश्रा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पुलिस की सजगता एवं सतर्कता के चलते जहां अधिकांश इनामी, वारंटी एवं वांछितों को जेल के सिंखचों के पीछे भेज दिया, वहीं अतिक्रमण करके यातायात को बाधित करने और लोगों के लिये मुसीबत का सबïब बनने वाले अतिक्रमणकारियों के खिलाफ भी प्रभावी कार्रवाई की गई।