नोएडा निठारी कांड
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से आस: पीडि़त परिवार
-सुरेश चौधरी-
नोएडा (युग करवट)। निठारी गांव की डी-5 कोठी के आसपास सोमवार सुबह तक सबकुछ सामान्य था। दोपहर दस बजे के बाद आए हाइकोर्ट के एक फैसले के बाद कोठी के आसपास लोगों और मीडिया का जमावड़ा हो गया। देश और दुनिया में तहलका मचाने वाला नोएडा का निठारी कांड एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। दरअसल, सोमवार को निठारी कांड के आरोपी मनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोहली की फांसी की सजा पर हाईकोर्ट इलाहाबाद ने रोक लगा दी है। नोएडा का निठारी कांड, गांव निठारी में स्थित एक कोठी से जुड़ा हुआ है। इस काली कोठी में मासूम बच्चियों के साथ रेप और हत्या की वारदात को अंजाम दिया गया। रेप की वारदातों पर पर्दा डालने के लिए आरोपी ने मासूम बच्चियों की हत्या कर दी। यह मामला 2006 में तब खुला जब निठारी के नाले से नरकंकाल मिले थे। साल-2005 से 2006 के बीच हुए इस कांड ने दुनिया भर के लोगों को हिलाकर कर दिया था। दिसंबर 2006 में नोएडा के निठारी में मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पीछे और आगे से बह रहे नाले में कंकाल मिले थे। इसके बाद पुलिस ने जांच की तो कई बच्चों के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या की दर्दनाक कहानियां सामने आई थी।
मीडिया के जरिए मामले ने विश्व स्तरीय रूप धारण किया तथा इसकी जांच नोएडा पुलिस से हटकर सीबीआई को दी गई। निठारी गांव में उस समय सोनिया गांधी, मायावती, शिवपाल यादव तथा भाजपा के कई बड़े नेता पीडि़तो के दर्द बांटने के लिए आए। उन्होंने मीडिया में बयान दिया और अपने फर्ज को कथित रूप से अदा करके चले गए।
फैसला आते ही निठारी के उन परिवारों का दर्द फिर से ताजा हो गया जिन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले अपने बेटे और बेटियों को खोया था। एक फैसले ने पीडि़त परिवारों को हैरान और परेशान कर दिया। उन्नाव की सुनीता और उनके पति आज भी निठारी गांव में कपड़े प्रेस कर जीवन यापन कर रहे हैं। उनकी बेटी ज्योति भी 2006 में संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हुई थी। बाद में उसकी चप्पल और कपड़े डी पांच कोठी के पीछे नाले में मिली थी। ज्योति की मां सुनीता का कहना है 19 साल पहले उनकी दस वर्षीय बेटी ज्योति दुपट्टा पिको कराने के लिए मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पीछे वाली दुकान पर गई थी। जब वह काफी देर तक नहीं लौटी तो सुनीता और उसके पति जब्बू लाल बेटी को तलाशने लगे। मोनिंदर और सुरेंद्र कोली कोठी के बाहर गेट पर खड़े थे।
दोनों ने सुनीता को बताया कि उसने ज्योति को इधर से जाते हुए नहीं देखा है। शक के आधार पर ज्योति के परिजनों ने गुमशुदगी दर्ज कराई। सुनीता का दावा है कि थाने में दोंनो ने ज्योति की हत्या की बात कबूल की थी। सुनीता को आज भी आशंका है कि हैवानियत के बाद उनकी बेटी की हत्या की गई होगी। सुनीता के मुताबिक कुल 19 किशोर और किशोरियां उस दौरान गायब हुई थीं। ज्योति की मां ने फैसले पर नाखुशी जाहिर करते हुए फिर से मामले की जांच करने की मांग की है। उन्होंने दोनों के फांसी की मांग भी की है।
सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं पीडि़त
सुनीता ने कहा पीएम मोदी और सीएम योगी से उन्हें अब भी न्याय की उम्मीद है। किशोरी के माता-पिता ने सीबीआई जांच पर सवाल खड़ा करते हुए कहा संबंधित जांच एजेंसी ने न तो मामले की गंभीरता को समझा और न ही सही से जांच की। इसका पूरा फायदा आरोपियों को मिला। उन्होंने मामले की दोबारा जांच कराने की मांग की है। वहीं ज्योति के पिता का कहना है कि बच्चों के लगातार गायब होने की जानकारी उन्हें मिल रही थी। पर जब अपनी बेटी गायब हुई तो दर्द का अहसास हुआ। बेटी को खोने का गम अंतिम सांस के साथ ही जाएगा। अगर वह जिंदा होती तो आज मैं उसको दुल्हन बनाकर विदा कर चुका होता और एक पिता का फर्ज भी उसके साथ निभ जाता।
फैसले के बाद कोठी पर पत्थरबाजी
निठारी कांड के पीडि़त रामकिशन ने फैसला आने के बाद कोठी पर पत्थर फेंक नाराजगी जताई। रामकृष्ण का साढ़े तीन साल का बेटा हर्ष 2016 में घर के बाहर से गायब हुआ था। फैसला आने के बाद वह अपना काम छोडक़र कोठी के बाहर पहुंचे और फफक-फफक रोने लगे। लोगों ने जब उन्हें समझाने का प्रयास किया तो उन्होंने कुछ देर खुद को अकेला छोडऩे की बात कही। गुस्से से लाल रामकिशन ने इसके बाद कोठी पर ईंट और पत्थर फेंक अपना गुस्सा जाहिर किया और संबंधित जांच एजेंसी की भूमिका पर भी सवाल उठाए। नोएडा प्राधिकरण में नौकरी करने वाले रामकिशन ने बताया कि साल,महीने,सप्ताह और दिन बीतते गए पर 17 साल पुराना दर्ज आज भी ताजा है। रामकृष्ण का दावा है कि दिसंबर 2007 में जब मामले ने तूल पकड़ा और सीबीआई की टीम उनके घर पहुंची तो उन्होंने पूरा सहयोग किया। दावा यह भी है कि कोठी के पास वाले नाले की खुदाई उन्होंने भी की थी ,जहां से उनके बेटे हर्ष के चप्पल और कपड़े मिले। यहां चप्पलों का एक ढेर था, जिसमें पायल नाम की युवती के भी कपड़े और चप्पल भी शामिल थे।
आदित्य बनकर आया हर्ष
रामकिशन बताते हैं कि बेटे को खोने के बाद लगता था कि अब उनके जिंदा रहने की कोई वजह नहीं बची है। कुछ समय बाद रामकिशन के घर पर फिर से बेटे की किलकारी गूंजी। बेटे का नाम रामकिशन ने आदित्य रखा। रामकिशन का कहना है कि आदित्य बिल्कुल हर्ष का प्रतिरूप है। आंख,नाक, मुस्कुराहट सबकुछ उसके जैसी ही है। हर्ष का गम तो जाने से रहा पर आदित्य के पैदा होने के बाद से यह कम अवश्य हुआ है। रामकिशन बेटे को याद कर करीब एक घंटे तक कोठी के बाहर खड़े रहे। घरवाले किसी तरह उसे समझा-बुझाकर ले गए।
अंदर पड़ी मिली आपत्तिजनक सामग्री
कोठी नंबर पांच अब पूरी तरह से वीरान है। यह काई लगने से काली हो चुकी है। पूरी कोठी मे पेड़-पौधे उग आए हैं। मकान पर लिखा हुआ पता भी अब कहीं गुम हो गया है। कोठी के अंदर जब जाकर देखा गया तो वहां जमीन पर कुछ आपत्तिजनक सामग्री पड़ी हुई मिली। सिगरेट के पुराने पैकेट भी अंदर पड़े हुए मिले। कोठी की खिड़कियों के सारे दरवाजे अब टूट गए हैं और वीरान कोठी में घुसने के बाद अंदर का नजारा काफी डरावना प्रतीत होता है। आसपास के लोगों से जब इस बारे में जानकारी की गई तो उन्होंने बताया कि कुछ नशेड़ी प्रवृत्ति के युवक कभी-कभी कोठी के अंदर रात में कूद जाते हैं।
पीडि़त परिवारों ने कर लिया पलायन
निठारी कांड के साक्षी रहे स्थानीय लोगों से जब बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि ज्यादातर पीडि़त परिवारों ने घटना के कुछ समय बाद ही नोएडा से पलायन कर लिया। इनमें ज्यादातर पश्चिमी बंगाल, बिहार और नेपाल के रहने वाले थे। उनका यह भी कहना है कि आरोपियों ने बाहरी लोगों पर दबाव बनाकर उन्हें दोबारा से उनके निवास स्थान पर भेज दिया ताकि साक्ष्यों के अभाव में दोनों कुछ समय बाद बरी हो जाएं। वहीं नवयुवकों में कम ही ऐसे हैं जिन्हें निठारी कांड याद हो। ज्यादातर ने इस बारे में जानकारी होने से अनभिज्ञता जताई है।
दो पुलिया के बीच था गुमनाम कब्रिस्तान
निठारी कांड के बारे में जानकारी देते हुए गांव के 80 वर्षीय ओमप्रकाश बताते हैं 2005 और 2006 के बीच गांव से बच्चों और बच्चियों के गायब होने की शिकायतें लगातार मिल रही थीं। डी-5 कोठी के दोनों तरफ तब पुलिया थी। इन्हीं दोनों पुलिया के बीच से बच्चे गायब हो रहे थे। तब सीसीटीवी कैमरों का इतना प्रचलन था नहीं कि घटना उसमें आसानी से कैद हो सके। दो पुलिया के बीच के क्षेत्र को गांव वाले गुमनाम कब्रिस्तान बोलते थे। इसके पीछे का कारण यह था कि उस समय उन्हें पता नहीं था कि बच्चे आखिर दो पुलिया के बीच की दूरी में कहां से गायब हो रहे हैं।
नाले का बदल गया स्वरूप
कांड के बाद जिस नाले की खुदाई हुई थी वहां पर अब कई अस्थायी दुकानें और आवास हैं। कई जगह पत्थर से इसे ढक दिया गया है। नाले से पानी आज भी बहता है पर वह वहीं दिखता है जहां का क्षेत्र खुला हुआ है। नोएडा में रहने वाले पीडि़तों को जब न्यायालय के फैसले की जानकारी हुई थी तो उन्होंने पलायन कर चुके अन्य पीडि़तों से भी संपर्क साधने का प्रयास किया। इसमें से ज्यादातर के नंबर या तो बंद मिले या गलत। सोमवार को पूरे गांव में फैसले के बाद हलचल रही और पीडि़त परिवारों की आखों में आसूंओ का सैलाब था।
परिजनों की आंखों में फिर से तैर उठा 17 साल पहले का मंजर
निठारी कांड से जुड़ी जो बच्चे और बच्चियों अब इस दुनिया में नहीं हैं,उनके परिजनों ने कुछ सपने देखे थे। कोई अपनी बेटी को आईपीएस अधिकारी बनाना चालता था तो कोई उसे आर्मी में भेजना चाहता था। औलाद के दुनिया से जाते ही परिजनों के सपने भी गुम हो गए। सोमवार को जब पीडि़त परिवारों को पता चला कि मामले से जुड़े दोनों आरोपी कुछ समय बाद जेल की सलाखों से बाहर आ सकते हैं। नीलम डेढ़ दशक पहले तक सेक्टर-30 में रहती थी। 25 सितंबर 2006 की घटना का जिक्र करते हुए बताती है कि उस दिन सुबह उनकी आठ वर्षीय बेटी आरती और बड़ा बेटा निठारी के पास एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई के लिए गए थे।
आइकार्ड बनाए जाने के कारण स्कूल में जल्दी छुट्टी हुई और दोनों बच्चे दोपहर 12 बजे घर आ गए थे। फिर बेटी निठारी गांव में रहने वाली एक सहेली के घर जाने की बात कहकर गई थी। शाम चार बजे तक वह वापस नहीं लौटी तो उसकी तलाश की जाने लगी। तब नवरात्र होने के कारण आसपास की रामलीला मेले में भी उसकी खोज की गई, लेकिन कुछ पता नहीं चला। घटना के वक्त तब एक घर में चालक के रूप में काम करने वाले पति दुर्गाप्रसाद मालिक के बेटे को लेने गए थे। नीलम और उनके पति बेटी की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए दो दिन तक भटकते रहे। इसी दौरान डी-5 कोठी के पास नरकंकाल मिलने की सूचना मिली।
पति संग जब नीलम घटनास्थल पर पहुंची तो वहां उनकी बेटी की चप्पल और कपड़े थे। इसके बाद वह बेहोश हो गईं। इस सदमे से उबरने के लिए उन्होंने सेक्टर-30 स्थित घर को छोड़ दिया और सेक्टर-122 में रहने लगी। नीलम ने बताया कि उनकी बेटी का सपना था कि पुलिस अधिकारी बन लोगों की मदद करे। घर छोडऩे पर भी वह खौफनाक मंजर साथ नहीं छोड़ रहा है।
बेटे की आह तक न सुन सका
निठारी गांव निवासी अशोक ने कहा कि वह इस आदेश से काफी आहत हैं। मूल रूप से नोएडा के ही रहने वाले अशोक के साढ़े पांच साल के बेटे की इस कांड में कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी। उन्होंने कहा कि आरोपी ताकतवर और पैसे वाले हैं जबकि वह गरीब हैं, इसलिए उनके साथ न्याय नहीं हुआ। डबडबाई आंखों से अशोक कहते हैं उनके जिगर के टुकड़े ने दुनिया छोडऩे से पहले आह भरी होगी जिसे वह सुन तक न सके। वहीं पीडि़त पप्पू का कहना है कि उच्च न्यायालय के इस फैसले से वह विचलित हैं और उन्होंने कहा कि वह न्याय की लड़ाई जारी रखेंगे। पप्पू की नाबालिग बेटी की कथित तौर पर बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। अशोक बेटे को सेना में भेजना चाहते थे।
न्याय मिलने तक जारी रहेगी जंग
पीडि़त परिवारों का कहना है कि फैसले से वह टूट अवश्य गए हैं,पर न्याय की लड़ाई जारी रहेगी। आगे क्या करना है इसको लेकर राय बनाई जाएगी और उसके बाद फैसला लिया जाएगा। अपने बच्चों की खातिर पीडि़त किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। कई सामाजिक संस्थाओं ने भी इस मामले को लेकर पीडि़त परिवारों से संपर्क साधा है और हर संभव मदद करने का आश्वासन भी दिया है।