कल मैंने इसी टॉपिक पर लिखा था कि योगी सरकार के फैसले से विपक्ष की जबान पर ताला लगेगा और उसके लिये ये मसला गर्म दूध बन जायेगा और वही दिखाई भी दे रहा है। कल कई नेशनल चेनल पर योगी सरकार के नवरात्रों पर सरकारी आयोजन और एक लाख रुपए दिये जाने को लेकर डिबेट हुईं। लेकिन कोई भी विपक्षी दल इस फैसले के खिलाफ नहीं बोला। यही कल मैंने लिखा था कि कोई नहीं बोलेगा। योगी सरकार के इस फैसले के खिलाफ। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजकुमार भाटी भी एक डिबेट में थे उन्होंने भी इसका विरोध नहीं किया। हालांकि उनकी पार्टी के राष्टï्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कुछ नहीं बोल पाये और उन्होंने एक ट्विट के माध्यम से योगी सरकार से अपील की कि एक लाख की जगह दस करोड़ रुपए जिलाधिकारी को दिये जायें ताकि सभी धर्मों के लोगों के आयोजन कराये जायें। जाहिर है ये बड़ा डिप्लोमेटिक ट्विट है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि योगी सरकार के इस फैसले से मिर्ची तो सभी को लग रही है, लेकिन कोई भी खुलकर विरोध करने की स्थिति में नहीं है। दरअसल चाहें कोई भी दल हो वो अपना वोट बैंक देखता है। कोई खुलकर खेलता है तो कोई पर्दे के पीछे खेलता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुलकर खेल रहे हैं और यही उनकी पहचान है। जब गैर भाजपाई दलों की सरकारे थीं तब बाकायदा सरकारी धन रोजा इफ्तार पार्टी के लिये जिलाधिकारी को आता था और बाकायदा जिला प्रशासन इफ्तार पार्टी का आयोजन करता था। ये एक तरह से परंपरा बन गई थी। भाजपा की सरकार में भी एक बार ऐसा हुआ था। प्रधानमंत्री भी इफ्तार पार्टी का आयोजन करते थे और जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने भी इफ्तार पार्टी आयोजित की थी। बाद में ये सिलसिला बंद हो गया था। अब दस साल से कोई इफ्तार पार्टी सरकारी तौर पर नहीं हो रही थी। जब सरकारी तौर पर इफ्तार पार्टी का आयोजन होता था तब किसी ने ये मांग नहीं उठाई कि नवरात्रों पर भी सरकार को आयोजन करना चाहिए। आज योगी सरकार ने नवरात्रों पर आयोजन का निर्देश क्या दे दिया सभी को मिर्ची लग गई और वो डिमांड करने लगे कि सभी धर्मों के आयोजन सरकार को करने चाहिए। पहले ऐसी डिमांड क्यों नहीं होती थी, ये बड़ा सवाल है। आज अगर सरकारी तौर पर ऐसा हो रहा है तो फिर मिर्ची क्यों लग रही है। जो कल हुआ क्या वो सही था, जो आज हो रहा है क्या वो सही है ये लंबी बहस का मुद्दा है। क्योंकि ये देश सभी का है इसलिए सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है। सभी को अपने धार्मिक आयोजन करने का अधिकार है। अब जो पहले होता रहा क्या वो हमेशा होता रहेगा। इसलिए जरूरत इस बात की है कि भी परंपरा हमेशा नहीं रहती। नवरात्रों पर सभी को आपसी सौहार्द के साथ देश को आगे बढ़ाने के लिये प्रयास करना चाहिए और ये बहुत ही अच्छा सुखद अनुभव है कि नवरात्र भी एकसाथ पड़ रहे हैं और रमजान भी। इसलिए सभी आपसी सौहार्द के साथ राजनीति से ऊपर उठकर देश के विकास के लिये सोचे।
इस शेर के साथ अपनी बात को समाप्त करता हूं
‘‘परिंदों में तो ये फिऱक़ा-परस्ती भी नहीं देखी
कभी मंदिर पे जा बैठे कभी मस्जिद पे जा बैठे ’’
– जय हिन्द।