एक घटना याद आती है। बात कोसी कलां के शनिधाम मंदिर की है। गाजियाबाद से बहुत लोग शनिवार को कोसी कलां जाते हैं। एक बार कुछ लोग मंदिर से दर्शन करके निकल रहे थे। रास्ते में भंडारा लगा हुआ था। भंडारे के आयोजकों ने उन लोगों से प्रसाद लेने का आग्रह किया। वह लोग उसे नजरअंदाज करके आगे बढऩे लगे। वहां एक वृद्घ बैठा हुआ था, उसने उन सभी लोगों को रोका और कहा कि प्रसाद ले लो कहीं ऐसा न हो कि कभी तुम भंडारा करने बैठो और कोई प्रसाद लेने आए ही नहीं। तो आप और हम भी किसी के आयोजन में जाएं तो निकलने की जल्दबाजी ना करें, थोड़ी देर बैठें, समय दें। समाजसेवी अजय गुप्ता के भाई का पिछले दिनों निधन हो गया था। उनकी शोकसभा में विधायक अतुल गर्ग भी पहुंचे। देख कर अजीब लगा कि श्रद्घासुमन अर्पित करने में अतुल गर्ग ने इतनी जल्दबाजी की कि फोटोग्राफर फोटो तक नहीं ले पाए। जितना समय उनको अग्रसेन भवन के गेट से श्रद्घासुमन अर्पित करने में लगा उससे कहीं कम समय में वह भवन से बाहर आ चुके थे। जिस जिसने यह देखा वह हैरान था। लोग कहने लगे कि इससे तो आते ही नहीं। हम में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जो ऐसा करते हैं। मगर ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर किसी के दुख में गए हो, मृत्यु के समय या शोक सभा में तो थोड़ा समय देना चाहिए। क्योंकि यदि आपके किसी आयोजन में दूसरे लोग ऐसा करेंगे तो आपको कैसा महसूस होगा। ऐसा ही नजारा नरेन्द्र कश्यप के पौत्र के नामकरण समारोह में देखने को मिला। सामान्यत: नियम यह है कि यदि आप किसी समारोह में पहले से बैठे हैं और मैं वहां प्रवेश करता हूं तो आपके पास आकर अभिवादन मुझे करना चाहिए। लेकिन नरेन्द्र कश्यप के यहां हुए समारोह में समाज का यह नियम भी धराशाई हो गया। केन्द्रीय मंत्री सामने बैठे थे और अन्य सांसद नजर बचाकर चले गए। जनप्रतिनिधियों को ऐसा व्यवहार समाज के लिए अच्छा नहीं है। इससे यह लोग भला क्या संदेश दे पाएंगे।