मुझे नहीं पता कि नगर निगम गाजियाबाद में खोड़ा नगर पालिका, लोनी नगर पालिका और मुराद नगर पालिका को मिलाकर नगर निगम गाजियाबाद के पुनर्गठन का कोई प्रस्ताव विचाराधीन है। सच में विचाराधीन है या नहीं। मुझे ये भी पता नहीं कि इस प्रस्ताव का मूल कारण क्या है? लेकिन अपने अनुभव के आधार पर मुझे ये प्रस्ताव समस्याओं के समाधान के स्थान पर समस्याओं को बढ़ाने वाला दिखता है। यह प्रशासनिक क्षमता का सर्व विदित सिद्धांत है कि जो यूनिट जितनी छोटी होगी ,उसकी प्रशासनिक व्यवस्था उतनी ही प्रभावी होगी। इसी आधार पर भाजपा ने छोटे राज्यों का न केवल समर्थन किया बल्कि उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य बनाये बल्कि इसी सिद्धांत के आधार पर आंध्र का बंटवारा करके तेलंगाना अलग राज्य बनाने का समर्थन किया। इसी आधार पर बड़े जिलों का विभाजन करके नए जिले बनाने का समर्थन किया है। किसी समय में मेरठ कमिश्नरी ने चार ही जिले थे। मेरठ, मुज्जफरनगर, सहारनपुर और बुलंदशहर। गाजियाबाद स्वयं मेरठ जिले की एक तहसील थी। अब मेरठ और सहारनपुर अलग कमिश्नरी बना दी गई हैं। मेरठ कमिश्नरी में ही 6 जिले गाजियाबाद हापुड़, गौतमबुद्धनगर, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली अलग जिले बना दिये गए हैं। इसके पीछे एक ही तर्क है कि जन समस्याओं के प्रभावी समाधान के लिए शासन की प्रशासनिक यूनिट जितनी छोटी होगी उतनी ही प्रभावी होगी। अगर विलय का ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन है तो वह प्रशासन की छोटी यूनिट प्रभावी यूनिट के सिद्धान्त के विरुद्ध होगा।
गाजियाबाद, खोड़ा, लोनी और मुरादनगर हमारी स्मृतियों से पहले से अलग अलग यूनिट हैं। चारों यूनिटों की अलग अलग संस्कृति है और अलग अलग समस्याएं हैं। गाजियाबाद बहुत समय से नगर नियोजन अधिनियम के अंतर्गत गठित गाजियाबाद सुधार मंडल और फिर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अंतर्गत विकास के रास्ते पर है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण ने स्वयं से अनेक कालोनियों का निमार्ण किया है। गाजियाबाद का कल्चर विकसित कालोनियों का हो गया है। लेकिन खोड़ा, लोनी और मुरादनगर बहुत समय से गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अंतर्गत नहीं थे इसलिए वे पूर्ण रूप से अविकसित नगर हैं। अगर उड़ान की भाषा मे कहें तो गाजियाबाद टेक ऑफ की स्थिति में है और बाकी में तो अभी हवाई पट्टियों का निर्माण होना है। इसलिए इनको एक करने का सबसे बड़ा नुकसान ये होगा कि गाजियाबाद का रुक जाएगा और अति पिछड़े क्षेत्र प्रशासन की प्राथमिकता में हो जाएंगे।
खोड़ा की अलग समस्याएं हैं, वह पूर्णत नोएडा विस्तार क्षेत्र में अनधिकृत विकसित हुआ। वहां की सारी जमीन की मिकलियत भी स्थापित नहीं है। पानी की टंकी ,बिजली के पावर स्टेशन, पुलिस की चौकी जैसे जनसुविधाओं के लिए स्थान उपलब्ध नहीं हैं। लोनी भी लंबे समय तक भूमाफियाओं के संघर्ष की स्थली रहा है। भूमि के स्वामित्व को लेकर खूनी संघर्ष होते रहे थे। वैसे भी दिल्ली की निकटता की चाहत में देश और कई तो कहते हैं बंगला देशी, रोहिग्या भी वहां बड़ी संख्या में आकर बसे हैं। वहां अभी भी भूमि के स्वामित्व के सबसे अधिक विवाद हैं। नगर पालिका लोनी पूरी अनधिकृत बसी है। और मुरादनगर भी सरना जलालपुर उखलारसी जैसे कृषि गांवों से घिरा रहा है और उसका सारा विस्तार कृषि भूमि में अवैध कालोनी निर्माण के रूप में हुआ है। इसलिए जनसुविधाओं का पूरी तरह से अभाव है। ऐसे नगरों को गाजियाबाद के साथ जोडऩे का निर्णय गाजियाबाद की जनता के साथ अन्याय होगा। जब गाजियाबाद इंदौर को पीछे छोडऩे के प्रयासों में लगा है तब उसे अति अनधिकृत क्षेत्रो के साथ जोडक़र गाजियाबाद के विकास के सपनों को चकनाचूर करने जैसा आत्मघाती कदम होगा। ये तो सम्भव है कि राजनैतिक रूप से इन नगरों के राजनैतिक नेतृत्व को हटाने में सफलता पा लें, लेकिन ये तीनो नगरपालिका मिलकर गाजियाबाद नगर निगम के स्थापित राजनैतिक नेतृत्व को छीनने में सफल हो जाएगा। तब पछताने के अलावा कोई अवसर नहीं होगा। सच क्या है ये तो हमें नहीं पता लेकिन खोड़ा नगरपालिका के नेतृत्व को भाजपा में लाने के प्रयासों की खबरें उड़ती रहती हैं। लोनी में भी वर्तमान नेतृत्व पूर्व में भाजपा में ही था। वह किसी से निजी विवाद के कारण भाजपा से अलग हुआ। भाजपा में रहते उसने जो आर्थिक साम्राज्य खड़ा किया था ,वह किसी से छुपा नहीं है। अगर सच मे ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन है तो उसको लागू करने से पहले उस पर जनता की राय आवश्यक है। बेमेल अनावश्यक गठबंधन किसी के लिए हितकर नहीं होगा न प्रशासनिक दृष्टि से और न राजनैतिक दृष्टि से हितकर होगा। बालेश्वर त्यागी, पूर्व मंत्री, उत्तर प्रदेश