सबसे पहले तो इस बेहूदा शीर्षक के लिए मुआफ़ी चाहता हूं। उन नेताओं से तो कुछ अधिक ही मुआफी का तलबगार हूं जिनके बारे में बात करते समय इस शीर्षक का सहारा लेना पड़ा। दरअसल बात ही कुछ ऐसी है कि इस तरह बात करनी पड़ी। हाल ही में यह ख़बर अवश्य ही आपकी भी निगाहों से गुजरी होगी कि कर्नाटक के भाजपा विधायक मदल विरूपशप्पा का बेटा चालीस लाख रूपए की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार हुआ और जब उसके घर की तलाशी ली गई तो 6 करोड़ रुपए नकद भी मिले। इस ख़बर के साथ एक खबर और भी थी मगर वह आप तक शायद नहीं पहुंची होगी कि विधायक महोदय गिरफ्तारी से बचने को पहले तो भूमिगत हो गए, मगर जब अदालत ने अग्रिम जमानत स्वीकार कर ली तो बैंड बाजे के साथ अवतरित हो गए। बात यहीं तक नहीं थमी। विधायक के समर्थन में भाजपाइयों ने बाकायदा विजय जुलूस निकाला और जम कर पटाखे फोड़े और फूल मालाओं से इस तरह लाद दिया जैसे वे कोई महान कार्य करके लौटे हैं। अब इस ख़बर की रौशनी में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को भी देखिए जिसके बाबत अभी तक कोई सुराग सीबीआई को नहीं मिला है और न ही उसके घर से कोई बरामदगी भी हुई है। अब बताइए उक्त शीर्षक के बाबत अब भी आपको कोई शिकायत है?
मनीष सिसोदिया से अपना कोई लेना देना नहीं है। उसकी पार्टी से तो बिलकुल भी नहीं है मगर उसकी गिरफ्तारी जिस तरह हुई है, वह अनेक सवाल खड़े करती है। मनीष ही क्यों मोदी सरकार में चुन चुन कर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया गया है। न जाने कितने बड़े छोटे विपक्षी नेता जेल गए और अभी न जाने कितने और जाएंगे। यकीनन गलत किया है तो सजा मिलनी ही चाहिए मगर यह क्या है कि आरोपी नेता भाजपा में शामिल हो जाए तो उसकी जांच ही बंद कर दी जाती है? उधर, माना गौतम अडानी से मोदी जी की घनिष्टता है और 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वे उसी के चार्टर विमान से दिल्ली आए थे। मगर यह कैसे हुआ कि सात बिलियन डॉलर की मल्कीयत वाला आदमी मोदी शासन में पहले सौ बिलियन का आदमी बन गया और जब एक विदेशी एजेंसी ने उसके खेल की पोल खोली तो अर्श से फर्श पर आ गया? टाटा, बिरला, गोदरेज और विप्रो जैसी कंपनियां जो डेढ़ सौ सालों से भारत के हर व्यापार में लगी हुई हैं उनकी बजाए सारी तरक्की कैसे कल के अडानी ग्रुप के ही हिस्से आई? ऐसा क्या फार्मूला गौतम अडानी के हाथ लगा जिससे दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, टेस्ला, एप्पल और अमेजन महरूम रहीं? अडानी की कंपनियों में लाखों निवेशकों सहित भारतीय सरकारी बैंकों और एलआईसी का भी पैसा लगा हुआ है। यदि इस मामले में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है तो क्यों सरकार संयुक्त संसदीय कमेटी से जांच नहीं कराती, क्यों इस मौके पर भी उन्हें नेहरू याद आ रहे हैं?
पूरे कर्नाटक में पोस्टर लगे हुए हैं स्थानीय भाजपा सरकार में कोई भी काम करवाना हो तो ४० फीसदी कमीशन देनी पड़ती है। विधायक के पुत्र के रंगे हाथ पकड़े जाने से यह अब सिद्ध भी हो गया है। भाजपा की अन्य सरकारों के बाबत भी कुछ इसी तरह की खबरें समय समय पर बाहर आती रहती हैं। क्यों मोदी सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती? भ्रष्टाचारी कोई भी हो उसे सलाखों के पीछे होना ही चाहिए मगर पता नहीं क्यों सरकार को अपने टॉमी दिखते ही नहीं?