लीजिए एक बार फिर आ गया तेंदुआ। न आने की पहले कोई ख़बर दी और न ही आने से पहले इजाज़त ली। मुंह उठाया और आ गया। इस बार मूड भी ठीक नहीं था उसका। यही वज़ह हो सकती है जो उसने दस-दस लोगों को लहुलुहान कर दिया। हालांकि आया तो वो पहले भी कई बार है मगर इस बार का उसका आना किसी को भी अच्छा नहीं लगा। वैसे अभी तक तो यह भी पता नहीं चला है कि आखिर वो आया क्यों था? कोई कह रहा है कि कोर्ट में तारीख़ पर आया था तो कोई कह रहा है कि किसी वकील से मिलने आया था। किसी-किसी का अनुमान है कि पेशी पर आए किसी कैदी से मिलाई को आया होगा और कोई-कोई दूर की यह कौड़ी भी ले आया कि किसी अफसर को ज्ञापन-व्यापन देने आया था मगर किसी ने चाय पानी पूछना तो दूर बैठने को भी नहीं कहा और वन विभाग वालों को बुलाकर उल्टा पकड़वा और दिया।
वैसे रहस्य तो यह भी है कि हर बार वो राजनगर में ही क्यों आता है? क्या वो पिछले जन्म में कोई अधिकारी-वधिकारी था और अपना पुराना घर देखने बार-बार यहां आता है? कहीं ऐसा तो नहीं उसका पेंशन-वेंशन जैसा कोई काम अटका हुआ है और उसी के लिए वो बड़े लोगों के यहां चक्कर काट रहा है? इसका मतलब तो उसके संज्ञान में है कि कलक्टर, पुलिस कमिश्नर, सिटी कमिश्नर, सारे एडीएम-एसडीएम, मंत्री, संत्री, सांसद और कई-कई एमएलए यहीं रहते हैं। अगले पिछले अधिकारियों की गिनती करें तो आधी कॉलोनी उन्हीं से भरी पड़ी है। फिर तो ठीक है, ऐसे में फरियाद लेकर बेचारा और कहां जाता? बेशक कविनगर में भी एमएलए, एमपी और मेयर रहते हैं मगर सिंगल विंडो सिस्टम के जमाने में फरियादी को राजनगर से बढिय़ा और भला क्या होता? अन्य किसी छुटभईया कॉलोनी में तो उसके जाने का खैर कोई मतलब ही नहीं था। वहां तो ले देकर पार्षद ही रहते हैं और पार्षदों का काम ही है टहलवाना, यह बात तेंदुए को पता होगी।
अदालत परिसर में बुधवार को दिन दहाड़े आए तेंदुए के पक्ष में सबसे वजनी दलील अब तक यही मिली है कि वह अवश्य ही जंगल की समस्याओं से संबंधित कोई शिकायत लेकर आया होगा। अब सारी समस्याओं का ठेका हम मनुष्यों ने ही ले रखा है क्या? जानवरों की कोई समस्या नहीं हो सकती क्या? बेशक महंगाई, नाली खड़ंजे और भ्रष्टाचार जैसी शिकायतें उसकी न हों मगर उनकी समस्याएं तो उससे भी बड़ी हो सकती हैं। लेकिन यहीं तेंदुआ मात खा गया। उसकी सारी समस्याओं की जड़ आदमी है और उसका समाधान भी वह आदमी से ही चाहता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके दिमाग में कुछ बदला-वदला जैसा चल रहा हो? हम उसके घर में घुस गए और वो हमारे में घुस आया? यदि ऐसा है तो यह नई मुसीबत है। पहले ही कबूतरों, बंदरों और कुत्तों ने जीना हराम कर रखा है और अब ये तेंदुआ और आ गया। कुत्ते, बंदर तो चलो जैसे-तैसे झिल भी गए, मगर इस तेंदुओं का क्या करेंगे? ये तो बात बाद में करता है और पंजा पहले मारता है। वैसे साहब लोगों! वो हर बार आपकी ही कॉलोनी में आता है तो समाधान भी आपको ही ढूंढना पड़ेगा। देखो प्लीज़! आप झोला उठा कर चल देने की बात मत करना।