जालंधर की एक सडक़ थी। रात के अंधेरे में मेरा एक मित्र और मैं पैदल ही कहीं जा रहे थे। दूर-दूर तक आदमजात का कोई नामो निशान नहीं था। तभी पीछे से एक मोटर साइकिल की आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ जैसे जैसे निकट आ रही थी, हमारे दिलों की धडक़नें लगातर तेज हो रही थी। लग रहा था कि जैसे आज जीवन का अंतिम ही दिन है। आशंका हो रही थी कि ये मोटर साइकिल वाला हमारे निकट आएगा और अपनी एके 47 से हमें छलनी कर देगा। मगर सुखद आश्चर्य, ऐसा नहीं हुआ। वह मोटर साइकिल सवार आतंकवादी नहीं वरन कोई आम शहरी था और अंधेरा होने के बावजूद हमारी तरह किसी मजबूरी वश अपने घर से बाहर था।
अपने इस खौफ की वजह आपको बता दूं। यह साल 1983 की बात है और पंजाब में घल्लू घारा सप्ताह मनाया जा रहा था। जाहिर है कि उन दिनों पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट अपने चरम पर था रोजाना निर्दोषों का कत्लेआम गाजर मूली की तरह किया जा रहा था। खौफ का ऐसा माहौल था जैसा बंटवारे के समय भी शायद नहीं रहा होगा। इस वाकए के ठीक एक दिन पहले ही मैं अमृतसर के हरमंदिर साहब में था और वहां सेवादारों के अतिरिक्त केवल तीन बाहरी श्रद्धालु थे। उनमें भी मैं इकलौता ऐसा था जिसके सिर पर केश नहीं थे अत: अनेक घूरती आंखें लगातार मेरा पीछा कर रही थीं। अब आप सोचेंगे कि आज यह किस्सा क्यों। तो बस इसका इतना सा ही मकसद है कि आजकल उस दौर की आहटें फिर सुनाई दे रही हैं।
पुरानी बातों से खुद को जोडऩे में यदि आप असफल हो रहे हों तो नया किस्सा सुनाया हूं। इस दिवाली पर मैं अमृतसर में था और रात के आठ बजे टैक्सी में सवार होकर शहर का नज़ारा देखने निकला था। मेरे अपने शहर के मुकाबले वहां आधी से भी कम रौशनी और पटाखों की आवाज सुनकर मैंने टैक्सी चालक से इसका कारण पूछा। उसका जवाब हैरान कर देने वाला था। बकौल उसके पिछले कुछ सालों से कट्टरपंथी सिख हिंदू त्यौहारों का विरोध करने लगे हैं और उसी के चलते हर साल पहले के मुकाबले दिवाली पर रौशनी कम होती जा रही है। चलिए अब ताज़ा हालात की बात करता हूं। पंजाब में आजकल जो हो रहा है उसकी जानकारी बेशक दुनिया को अब जाकर अजनाला कांड से हुई हो मगर सच्चाई इससे इतर है। खालिस्तान आंदोलन को किसी न किसी रूप में दशकों से जिंदा रखा जा रहा है। शुरुआती दौर में कनाडा और ब्रिटेन में बैठे संपन्न और खुराफाती सिख इसे लेकर शोर शराबा कर रहे थे और अब उन्होंने पंजाब में भी अपने एजेंट तैयार कर लिए हैं। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने तो एक दिन के लिए भी भारत विरोधी इस षड्यंत्र से अपने हाथ नहीं खींचे थे। गुरु ग्रंथ साहब की ओट में अलगाववादियों का तलवारों के साथ थाने पर हमला तथा पुलिसकर्मियों को बुरी तरह घायल कर दिए जाने और फिर भी पुलिस का निष्क्रिय बने रहना साबित कर रहा है कि प्रदेश में एक बार फिर सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। राज्य की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार कतई नहीं समझ रही कि आग से इसी तरह खेल कर कांग्रेस अपना और देश का कबाड़ा पहले कर चुकी है। अब आप भी थोड़ा बहुत भयभीत होना शुरू कर दीजिए, क्योंकि डरावने नए किस्सों का माहौल बनाया जा रहा है।