गाजियाबाद (युग करवट)। वरिष्ठ अधिवक्ता सत्यकेतू सिंह ने कहा कि छुआछूत का समर्थन करने वाले स्वामी, बाबा या अन्य लोग कभी देश हितैषी नहीं हो सकते हैं। ऐसे लोगों का विरोध खुलकर करना चाहिए ताकि देश में छुआछूत की यह रीति समाप्त हो सके। उन्होंने पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती को छुआछूत का समर्थक कराया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि वह तीन दिन के प्रवास पर गाजियाबाद आए पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, जो उनके मित्र अनिल गर्ग के निवास पर अपने मित्रों के साथ प्रवास पर हैं। उनसे भेंट करने पहुंचे। पादुका पूजन के अगले दिन स्वामी जी का जिज्ञासा व दीक्षा कार्यक्रम था। अधिवक्ता सत्यकेतू सिंह ने
जब मैने स्वामी के समक्ष स्पष्टï शब्दों में जन्मधारित वर्ण व्यवस्था, जाति आधारित ऊंचनीज और दलितों से छुआछूत का कडा विरोध करते हुए कहा कि सभी मानव ईश्वर की अद्भुत और पवित्र कृति हैं, जिनमें दलित भी शामिल हैं। ऐसे में कोई भी इनसे छुआछूत करता है, इन्हें निम्न श्रेणी का समझता है, वह व्यक्ति आस्तिक नहीं हो सकता। वह न केवल ईश्वर का भी अपमान करता है बल्कि ऐसा कृत्य और सोच पूर्णत: अमानवीय हैं तथा देश और समाज के लिए भी घातक हैं, इसलिए विकृति को समाप्त करना चाहिए। मैने उन्कें परिष्क्रत मनुस्म्रति भी भेंट की ओर बताया कि हम वैदिक सन्यास आश्रम में दलितों विशेषकर वाल्मीकियों के लिए समय-समय पर यज्ञ करते हैं जिसमें यजमान यही लोग रहते हैं और हम इन्हें सम्मानित भी करते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि उन्होंने स्वामी जी से इस विषय में उनकेे विचार और आर्य समाज के इस अभियान के लिए आर्शीवाद का निवदेन किया और कहा कि ऐसी कुप्रथा के रहते हिंदु राष्ट्र जैसी बातें निरर्थक हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि स्वामी जी को उनका यह निवेदन बिल्कुल भी पंसद नहीं आया। उन्हें पहले स्वामी जी के शिष्य ने बीच में रोकने की कौशिश की, लेकिन फिर स्वामी निश्चलानंद की ओर से इस बात का सीधा उत्तर न देकर ऐसा घटिया कुतर्क किया गया जिसे बताना भी उचित नहीं है। सत्यकेतू सिंह ने कहा कि स्वामी निश्चलानंद के इस कुतर्क से वह खुद स्तब्ध रह गए। लेकिन स्वामी जी ने जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था और छुआछूत का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि वह बेशक विद्वान व्यक्ति हैं और संन्यासी होने के नाते सम्मान के पात्र है लेकिन ऐसी सोच का कोई भी व्यक्ति समाज और देश का हितेषी बिल्कुल नहीं है। समाज को जागरूक होकर ऐसे स्वामी, बाबा और गुरुओं का खुलकर विरोध करना चाहिए जो छुआछूत का समर्थन करते हो और उनके लिए इस तरह के विचार रखते हों।