मोहसिन खान
मेरठ (युग करवट)। २०१४ और २०१९ के लोकसभा चुनाव का पश्चिम उत्तर प्रदेश से चुनावी शंखनाद करने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए इस बार राह उतनी आसान नहीं होगी जितना समझा जा रहा है, क्योंकि २०२४ के चुनाव में एनडीए को चुनौती देने के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ने अभी से समीकरणों को साधना शुरू कर दिया है।
दरअसल पूर्व के लोकसभा चुनावों में अकेले अकेले चुनाव लडऩे वाले विपक्षी दल इस बार एक ही बैनर के तले हंै। ऐसे में उनको मिले वोट गठबंधन होने के बाद एक मुश्त हो जाएंगे तो ऐसे में पश्चिम उत्तर प्रदेश की मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बागपत और सहारनपुर सीट पर अपना खास असर छोड़ सकते है। अगर मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट की बात करेें तो २०१४ के चुनाव में फिल्म अभिनेत्री नगमा को कांग्रेस ने चुनावी मैदान में उतारा था और उनको करीब ४२००० वोट मिले थे। जबकि २०१९ के चुनाव में बिना कोई खास प्रचार के कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े हरेन्द्र अग्रवाल ने करीब ३४ हजार वोट हासिल किए थे यानि वोटो का गणित साफ है कि कांग्रेस का कोर वोट विपरीत हालातों में भी नहीं खिसका। इस लिहाज से २०२४ के चुनाव में एक साथ मिलकर लड़ रहे विपक्षी दलों के वोट अगर कांग्रेस के कोर वोट के साथ प्लस होते हैं तो फिर भाजपा का खेल बिगड़ सकता है। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि वेस्ट की इन सीटों पर भाजपा की नजर भी लगी हुई है। दरअसल मेरठ लोकसभा सीट से सटी बागपत और मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार ना केवल मुश्किल से बल्कि बेहद नजदीकी मुकाबलें में जीते थे और जीत का अंतर भी दो से तीन हजार वोटों के बीच ही रहा था। २०१९ के चुनाव में बुआ और भतीजे का गठबंधन था जबकि कांग्रेस अकेले ही चुनाव लड़ी थी और उस चुनाव में वोट प्रतिशत के हिसाब से बहुजन समाज पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था क्योंकि मेरठ सीट से बसपा प्रत्याशी हाजी याकूब कुरैशी दूसरे स्थान पर रहे थे। अब चूंकि बसपा नए गठबंधन से फिलहाल बाहर है और बसपा सुप्रीमों यह कह चुकी है कि वो अकेले ही लोकसभा का चुनाव लडेंगी। दरअसल मायावती के गठबंधन के आने की संभावना इसलिए भी कम हो जाती है क्योंकि सपा और रालोद के साथ चन्द्रशेखर रावण की गलबहियां मायावती का रास नहीं आ रही है। उधर घोसी उप-चुनाव के परिणाम ने भी भाजपा की मुश्किलों को इसलिए भी बढ़ा दिया कि मुस्लिम, जाट और जाटव का कॉमबिनेशन एकदम उभरकर सामने आया। इसलिए नए गठबंधन के साथ वेस्ट यूपी से चुनाव लडऩे वाले उम्मीदवारों की पार्टियों के कोर वोट बैंक के साथ गठबंधन दलों का वोट जुड़ जाता है तो वह पश्चिम की कई सीटों पर अपना गहरा प्रभाव छोडेगा। यहां ये भी नहीं भूलना होगा कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से मुस्लिम और जाटों के बीच आई गहरी खाई को २०२२ विधानसभा चुनाव ने भरने का काम किया। बागपत लोकसभा में लगने वाली मेरठ जिले की मुस्लिम और जाट बाहुल्य सिवालखास विधानसभा सीट पर रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़े गुलाम मोहम्मद ने जीत दर्ज की थी। इसके अलावा सपा से गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरी रालोद ने वेस्ट की नौ विधानसभा सीटों सादाबाद, सिवालखास, शामली, थानाभवन, छपरौली, पुरकाजी, खतौली और मीरापुर में जाट-मुस्लिम समीकरण ने गुल खिलाया था और अगर २०२४ के चुनाव में वोटों में सेंधमारी ना हुई तो फिर एनडीए के लिए राहें बेहद मुश्किल हो जाएगी। उधर राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि वेस्ट की लोकसभा सीटों पर दबदबा रखने वाले मुस्लिम मतदाताओं के लिए भारत जोड़ो यात्रा और नया गठबंधन बनने के बाद से कांग्रेस के रूप में विकल्प खुल गया है और ये इंडिया गठबंधन एनडीए की मुश्किलें बढ़ा सकता है। दरअसल इंडिया गठबंधन बनने के बाद उत्साह के साथ २०२४ के लोकसभा चुनाव में जीत का रोडमैप तैयार करने में लगी कांग्रेस सीट शेयरिंग में पश्चिम उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर अपना दावा ठोक सकती है और उसमें मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट भी शामिल है। जिसको लेकर राजनीतिक गलियारों में अवतार सिंह भड़ाना के मेरठ से चुनाव लडने की चर्चाएं जोरों हैं। कांग्रेस के लिए हवा खिलाफ चलने के बावजूद १९९९ में कांग्रेस के टिकट पर मेरठ सीट से चुनाव लड़े अवतार सिंह भड़ाना ने भाजपा के किले को ध्वस्त करके जीत दर्ज की थी। अब अगर मेरठ सीट से कांग्रेस अवतार सिंह भड़ाना को अपना उम्मीदवार बनाती है तो फिर इस सीट पर चुनाव ना केवल दिलचस्प होगा बल्कि मुकाबला कांटे का भी हो सकता है। हालांकि अभी इस तरह के कयास ही लगाए जा रहे है कि अवतार सिंह भड़ाना मेरठ सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ सकते है।