भगवान का लाख लाख शुक्र है कि सरकार को सद्बुद्घि आ गई और उसने वैलेंटाइन डे को काऊ हग डे के रूप में मनाने का अपना ऐलान वापस ले लिया। अपनी तो यह सोच सोचकर ही जान खुश्क हो रही थी कि सरकार का घनघोर समर्थक होने के चलते यदि मैंने किसी तरह से यह कर भी डाला तो इसके अच्छे बुरे का कौन जिम्मेदार होगा? मेरा मतलब है कि जिस गाय के साथ मैंने यह हरकत की, अगर वह मरखनी निकली तो? अब इस उम्र में तो आसानी से टूटी हड्डियां भी नहीं जुड़ेंगी। बेशक गाय के हमले से मरने पर अब उत्तर प्रदेश सरकार चार लाख रूपए मुआवजा देती है मगर फिर भी इतने सस्ते में निपटना कुछ जम नहीं रहा। वैसे यह सरकार की सरासर गलती भी तो है। उसे अपनी बात जरा और खुलकर नहीं करनी चाहिए थी? मसलन गौ आलिंगन दिवस पर केवल गाय को ही गले लगाना है अथवा बैल और सांड भी चल जायेंगे? यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि सरकार ने देश के लगभग बीस करोड़ गौ वंश को इसकी पूर्व सूचना दे दी है अथवा नहीं? कहीं गाय इस बात से नाराज़ होकर सींगों पर तो नहीं उठा लेगी कि कमीनों आगे पीछे तो पूछेंगे नहीं और आज एक-एक गाय के साथ सात-सात लोग सामूहिक आलिंगन कर रहे हो? यह बात भी स्पष्ट नहीं हुई कि मोटे चश्मे के चलते यदि किसी ने सांड को गाय समझ लिया तो क्या इससे काऊ हग डे का टास्क पूरा मान लिया जायेगा अथवा गौ वंश का जेंडर पहले सुनिश्चित करना पड़ेगा?
वैसे तो सरकार की तरह मैं भी गाय को माता मानना चाहता हूं। उसके दूध, घी, मूत्र और गोबर की सिफतों से भी भलीभांति वाकिफ हूं मगर फिर भी हाथ पैर तुड़वाने से बहुत डर लगता है। बेशक सरकार अपनी जगह ठीक है। उसकी मजबूरी है कि वह सातों दिन, बारह महीनों और पूरे साल कुछ न कुछ ऊल जलूल करती रहे जिससे उसकी भेड़ें बाड़े से बाहर न भागें। यूं भी सडक़ों और खेतों में छुट्टी घूम रही लाखों करोड़ों आवारा गायों के लिए कुछ ठोस करने से सस्ता और कहीं अच्छा है कि ऐसे टास्क भक्तों को दिए जाएं जिससे वे खूंटे से बंधे रहें। मगर फिर भी वैलेंटाइन डे से पंगा न लेकर आगे पीछे ऐसा कुछ करना चाहिए था। वैलेंटाइन डे वाले दिन बूढ़े घर से निकलते नहीं और इस दिन जवान घर पर टिकते नहीं। अब भला ऐसा कैसे संभव होता कि अपने प्रियतम को छोडक़र-छोडक़र कोई जवान लडक़ा लडक़ी गाय को ढूंढता फिरे। सरकार के बहकावे में आकर यदि किसी बुड्ढे ने यह पंगा ले लिया तो उसका क्या होगा? अब यह ताली-थाली बजाने और मोमबत्ती टॉर्च जलाने जैसा सीधा टास्क तो है नहीं। अखबारों में रोज छपता है कि गाय अथवा सांड के हमले से फलां-फलां की दर्दनाक मौत हो गई। सच बताऊं तो मैं भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के काऊ हग डे का पूर्ण समर्थक हूं मगर इसे हवा-हवाई नहीं वरन पूरी तैयारी के साथ किया जाना चाहिए। सबसे पहले तो सरकार को इस खास दिन के लिए कोरोना रोगियों की तरह अस्पतालों में बैड सुरक्षित करने चाहिए। मैंने सुना है कि भूखी प्यासी गाय अक्सर हमला कर देती हैं। घायलों के मेडिकल बिल पास करने के लिए इंशोरेंस कंपनियों को अलग से बजट देने की भी दरकार होगी। उन राज्य सरकारों को भी आर्थिक मदद देनी होगी जो गायों के हमले से मरने अथवा घायल होने पर मुआवजा देती हैं। वैसे इस सारी कवायद से बचने का एक जुगाड़ भी मेरे दिमाग में है। यदि हम सारे साल ही गाय से आलिंगन करने लगें तो काऊ हग डे वाले दिन गाय हमसे खफा नहीं होगी। मगर यह तो असंभव है। चलो काऊ हग डे ही मनाते हैं।