गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट व्यवस्था को लेकर कई तरह के सवाल किए जा रहे हैं। सवाल अधिकारियों की कार्यशैली, व्यवहार, सक्रियता आदि को लेकर है। एक तरफ डीसीपी निपुण अग्रवाल की सक्रियता चर्चा में है तो लगातार हो रही घटनाओं को लेकर लोग चिंतित और हैरान हैं। कांवड यात्रा हो, मंदिर के आयोजन हों, कोई मार्च निकल रहा हो सब जगह निुपण अग्रवाल ही नजर आते हैं। गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट के अधिकारी गर्व कर सकते हैं कि पीवीआर के रिस्पॉस टाइम को लेकर गाजियाबाद अव्वल रहा है। जैसा मैंने पहले कहा कि सवाल पुलिसकर्मियों के व्यवहार, उनकी शैली को लेकर है। पिछले दिनों हापुड़ चुंगी पर एक घटना हुई थी जिसे बहुत ज्यादा अटेंशन नहीं मिली। एक व्यक्ति अपनी बाइक पर बिठाकर गर्भवती महिला को लेकर जा रहा था। येलो लाइट के दौरान उसने बाइक निकालने की कोशिश की। उसे पुलिसकर्मियों ने रोक लिया। यह देखने के बाद भी महिला दर्द से कराह रही थी, पुलिसकर्मियों ने उसे रोके रखा, आसपास के लोगों के हस्तक्षेप के बाद उसे जाने दिया गया। पुलिसकर्मी अपने डयूटी कर रहे हैं सराहनीय बात है मगर थोड़ी बहुत मानवता भी रखनी चाहिए, विशेष परिस्थिति में तो कम से कम जरूर। इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि थाना स्तर पर पीडि़तों की सुनवाई कम होती है। यदि ऐसा नहीं होता अधिकारियों के यहां फरियादियों की भीड़ नहीं होती। कई थानेदारों के व्यवहार को लेकर अक्सर चर्चा होती है। यकीनन यह अच्छा नहीं है। दूसरी बात यह कि चेहरे वही रहते हैं बस थाने बदल जाते हैं। पिछले दिनों कविनगर थाना प्रभारी अमित ककरान को लखनऊ से मिले निर्देश के बाद हटाया गया ऐसा बताया जा रहा है। कितनी हैरान की बात है कि कमिश्नर जिस पुलिस निरीक्षक को काबिल मानकर थाने का प्रभारी बनाते हैं, उसे हटाने के निर्देश ऊपर से आते हैं, साथ में उनकी शिकायतें भी बताई जाती हैं। अभी भी ऐसे कई थाना प्रभारी हैं जिनके बारे में शिकायतें आती हैं। जैसा कि हमने दो दिन पहले लिखा कि पुलिस कमिश्नर को समीक्षा करना चाहिए कहां क्या कमी है और उसे दूर कराना चाहिए। इसी तरह थाना प्रभारियों को लेकर भी फीडबैक लेना चाहिए। उसी के आधार पर तैनाती मिलनी चाहिए। देखना चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि योग्यता कहीं अंधेरे कोने में बैठी हो। उसके बाद फेसला लिया जाए कि क्या गाजियाबाद में पुलिस विभाग में फेरबदल की जरूरत है कि नहीं?