रोहित शर्मा
गाजियाबाद (युग करवट)। नगर निगम चुनाव का लेखा-जोखा किया जाए तो दो लाइनो में बात खत्म हो जाती है। महापौर पद पर कांग्रेस की प्रत्याशी पुष्पा रावत को मात्र 58,591 वोट मिले और उनकी जमानत भी नहीं बच पाई। पार्षदों की बात की जाए तो कांग्रेस पार्टी मात्र तीन सीटों पर सिमट गई। नगर निगम चुनाव देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को मिली यह सबसे बड़ी हार है। नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की इस हार पर महाभारत छिड़ी हुई है।
महापौर प्रत्याशी के चयन से लेकर पार्षदों के टिकट बंटवारे को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। बड़ा सवाल है कि मेयर चुनाव में कांग्रेस को मिली हार का आखिर असली गुनाहगार कौन है? इसका निष्कर्ष निकालने के लिए कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की कार्यप्रणाली का पूरा पोस्टमार्टम करना होगा। सामान्य महिला सीट घोषित होने के बाद कांग्रेस में इस बात को लेकर धूंध के बादल छाए हुए थे कि पार्टी की ओर से महापौर पद का उम्मीदवार कौन होगा? कांग्रेस में कई नाम चर्चा में चल रहे थे। 21 अप्रैल की रात अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कार्यालय में इस बात को लेकर नेताओं के बीच अंतिम मुहर लगी कि उत्तराखंड से आने वाली पुष्पा रावत को महापौर पद पर पार्टी का टिकट दे दिया जाए। पार्टी के सूत्रों के अनुसार कांग्रेस की एक महिला नेत्री की दखलंदाजी के बाद पार्टी हाईकमान ने पुष्पा रावत का टिकट महापौर पद के लिए फाइनल कर दिया। पुष्पा रावत की पैरोकार महिला नेत्री का दावा था कि गाजियाबाद में मौजूद 3 लाख से अधिक उत्तराखंडी उनकी जीत की इबारत लिखेंगे। दूसरी ओर इस बात की चर्चा भी जोरों पर थी कि महिला नेत्री ने इस बात को लेकर पुष्पा रावत का नाम आगे बढ़ाया कि कहीं किसी ब्राह्मण नेता के परिवार में महापौर पद का टिकट ना चला जाए। खैर, 22 अप्रैल को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी ने पुष्पा रावत के नाम पर अपनी सहमति की मुहर भी लगा दी। वर्तमान में नगर निगम चुनाव के परिणाम सार्वजनिक हो चुके हैं। पुष्पा रावत की जमानत जब्त हो चुकी है और कांग्रेस पार्टी अपना दूसरा स्थान भी बरकार नहीं रख पाई है। इस परिणाम को लेकर जहां कांग्रेसियों में चर्चा है वहीं यह कैसे हुआ इसे लेकर भी माहौल गरमाया हुआ है। चर्चा है कि वार्ड-36 प्रह्लाद गढ़ी महिला नेत्री का वार्ड कहा जाता है। यहां कांग्रेस की प्रत्याशी शालू मात्र 59 वोटों पर ही सिमट गईं। पार्टी के सूत्रों की पर यकीन किया जाए तो महिला नेत्री की एक रिश्तेदार पास के ही वार्ड से निर्दलीय चुनाव लड़ रही थीं। महिला नेत्री का पूरा परिवार उन्हें चुनाव लड़वाने में लगा हुआ था। उनके वार्ड में कांग्रेस की प्रत्याशी का मात्र 59 वोटों पर ही सिमट गई और कांग्रेस की सबसे सामने फजीहत हुई। सूर्यनगर भी कांग्रेस की महिला नेत्री के वर्चस्व वाला बताया जाता है। यहां उनका परिवार निवास करता है। कांग्रेस के लिए यह भी शर्म की बात है कि पार्टी इस वार्ड में भी अपना कैंडिडेट तक खड़ा नहीं कर पाई। इस वार्ड को लेकर भी कांग्रेस को बड़ी फजीहत झेलनी पड़ी। दरअसल, तमाम नगर निगम क्षेत्र में कांग्रेस को 34 वार्डों में कैडिडेट तक नहीं मिले। इनमें से ज्यादातर वार्ड हिंडनपार क्षेत्र के हैं। हिंडनपार क्षेत्र कांग्रेस के कई राजनीतिक घरानों का गढ़ बताया जाता है। यहां से आने वाले नेता पार्टी में हाईकमान तक अपने संबंध होने का दम भरते हैं। इसी दम पर चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे में इनकी सहमति की मुहर भी लगती है। फिलहाल, नगर निगम चुनाव परिणाम आने के बाद एक अध्याय फिर समाप्त हो गया है। चर्चा चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस की फजीहत को लेकर हो रही है। घातक चुनाव परिणाम आने का गुनाहगार कौन है, इसकी चर्चा हर आम कांग्रेसी कार्यकर्ता कर रहा है। कांग्रेसी सब जानते हैं, लेकिन इससे सबक लेंगे या नहीं यह आने वाला वक्त ही बताएगा।