राजनीति को जाति-धर्म, क्षेत्र, गली-मुहल्लों को बांटते देखा था। सडक़ों, पार्कों, शहरों के नाम बदलते देखा था। लेकिन पूरे जनमानस को देश के दो नामों में बांटने का श्रेय भाजपा को ही जाता है। भाजपा आज कह रही है कि इंडिया शब्द से गुलामी की बू आती है। तो भाजपा बताए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब खेलो इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को शुरू किया था तक इंडिया शब्द से गुलामी नहीं झलकती थी? या भाजपा यह कह सकती है कि ये योजनाएं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुरू की ही नहीं थीं। या भाजपाई ये कहेंगे कि तब इंडिया शब्द ठीक था अब जब विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम आईएनडीआईए रख लिया है तो भाजपा को परेशानी हुई है। अगर विपक्ष ने इंडिया नाम रख ही लिया तो सत्ता पर आरूढ भाजपा में इतनी घबराहट क्यों बढ़ी कि उसे इंडिया शब्द से ही नफरत हो गई। क्या इसे ऐसा देखा जाए कि भाजपा ने अंदरखाने मान लिया है कि विपक्ष की ताकत बढ़ रही है? अब केन्द्र सरकार इसरो, एम्स, आईआईटी, आईआईएम आदि संस्थाओं का क्या करेगी क्योंकि इन सभी के नाम में इंडिया शब्द आता है। पूर्व क्रिकेटर विरेन्द्र सहवाग कह ही चुके हैं कि टीम इंडिया नहीं टीम भारत कहा जाना चाहिए। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को आने वाली पीढिय़ां इसलिए भी याद रखेंगीं कि उनके कार्यकाल में इंडिया दैट इस भारत की संवैधानिक व्याख्या को राजनीतिक दुर्भावना से बदलने का प्रयास किया गया। क्या अब देश के सभी पासपोर्ट धारकों पर से इंडिया शब्द हटाया जाएगा? आधार कार्ड, पेन कार्ड पर भी परविर्तन होगा? रही बात विपक्ष की तो भाई भारत कहो या इंडिया बात तो देश की ही की जा रही है। हां अंतर इतना है कि भाजपा सरकार ने इंडिया शब्द से अपना परहेज तब जाहिर किया जब विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम इस पर रखा। इसीलिए भाजपा सरकार की मंशा पर सवाल उठते हैं। वरना नौ साल से भाजपा केन्द्र की सत्ता पर काबिज है कभी इस तरह की बात नहीं सुनी गईं। यदि ऐसा होता भी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खेलो इंडिया, मेक इन इंडिया कहते ही नहीं। कुल मिलाकर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कुछ इंडिया वाले रह गए और कुछ भारत वाले हो गए। अब अगला आम चुनाव इस मुद्दे पर भी लड़ा जाएगा। देखेंगे कि देश की जनता इंडिया को चुनती है या भारत को?