29 दिसंबर 2006 की सुबह ग्यारह बजे मैं हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय में अपने संवाददाताओं की नियमित बैठक ले रहा था कि तभी खबर मिली की नोएडा के निठारी में कई बच्चों के नर कंकाल एक नाले से मिले हैं। खबर इतनी भयावह थी कि हम लोग तुरंत ही घटना स्थल की और दौड़ पड़े। वहां जाकर देखा तो ऐसा मंजर था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। नाले से एक के बाद एक बच्चों के कंकाल मिल रहे थे और गुस्साए क्षेत्र के लोग पुलिस वालों को पीटने पर आमादा थे । चूंकि यह दुर्लभतम मामला था अत: महीनों तक अखबारों की सुर्खियों में रहा। वहां कुल 19 लोगों के कंकाल बरामद हुए थे और जिनमें से अधिकांश नाबालिग थे। महीनों तक रोज नई सनसनीखेज जानकारी बाहर आती रही। कभी चाइल्ड पोर्न का एंगल निकलता तो कभी शवों से बलात्कार का। कभी नर भक्षण का तो कभी मानव अंगों के व्यापार का। मामला सीबीआई के सुपुर्द हुआ और बाद में गाजियाबाद की सीबीआई अदालत में ही इसकी सुनवाई हुई। मैंने स्वयं कई बार अदालत जाकर भी सुनवाई का जायजा लिया। हर बार हत्यारों पर कसता कानून का शिकंजा देख कर बड़ा संतोष होता था। सीबीआई अदालत ने भी कोई नरमी नहीं दिखाई और नर पिशाच सुरिंदर कोली 14 और मोनिंदर सिंह पंढेर को तीन मामलों में मौत की सजा सुनाई। हालांकि कानूनी दांव पेच का लाभ उठा कर आरोपी फांसी की सजा को हमेशा टलवाते रहे और अब इन्ही दांव पेचों के बल पर उच्च न्यायालय से बरी भी हो गए। जाहिर है कि जिनके बच्चे मारे गए थे वे इस फैसले से बेहद हताश हुए होंगे मगर मुझ जैसे वे सैंकड़ों लोग भी खुद को कम छला हुआ महसूस नहीं कर रहे हैं जिन्होंने सुरिंदर कोली की अदालत में दानवी मुस्कान देखी है।
हालांकि मैं आशावादी इंसान हूं मगर सिस्टम की बात करें तो आए दिन निराशा ही हाथ लगती है। निठारी के आसपास बच्चे सालों से गुम हो रहे थे मगर पुलिस के कान पर जूं नहीं रेंगी। आरडब्ल्यूए की मशक्कत से जब कंकाल नाले से बरामद हुए तब भी पुलिस ने लीपापोती ही की। मामला सीबीआई को गया और अब इलाहाबाद हाई कोर्ट का कहना है कि उसने भी कायदे से जांच नहीं की। नतीजा आरोपी बरी हो गए। क्या यह मजाक सा नहीं लग रहा कि जिस आदमी को 14 बार फांसी की सजा सुनाई गई हो और इस सजा के लिए उसे मेरठ जेल में भी भेज दिया गया हो और वह अब बरी हो गया? मुझे भली भांति याद है कि ब्रेन मैपिंग में कोली ने स्वीकार किया था कि वह बलात्कार कर शवों के टुकड़े टुकड़े कर देता था, फिर भला वह कैसे छूट गया? किसी भी दिन का अखबार उठा लीजिए, आपको कोई न कोई ऐसी खबर जरूर दिख जायेगी जो पूरी व्यवस्था के प्रति आपकी आस्था को डिगा देगी। बड़े बड़े अपराधी अपनी राजनीतिक पहुंच और कानूनी दांव पेचों के बल पर मौज उड़ा रहे हैं और जिनका कोई वाली वारिस नहीं वे सलाखों के पीछे यातना भुगत रहे हैं। सत्ता पर पकड़ हो तो हर कानून आपके ऊपर फूल बन कर बरसेगा और यदि आप सत्ता विरोधी गुट के हैं तो हमारे कानून से अधिक सख्त इस कायनात में कुछ और हो नहीं सकता। मगर जहां तक निठारी कांड का सवाल है तो इसमें आरोपियों के पीछे कोई राजनीतिक शक्ति भी नहीं थी। फिर कैसे वे कानून की पकड़ में नहीं आए? चलिए माना पंढेर पैसे वाला था और एक से बढ़ कर एक नामी गिरामी वकील की सहायता ले सकता था मगर कोली कैसे छूटा? वह तो अधिक पढ़ा लिखा भी नहीं था और पैसे के मामले में भी कमजोर था। कई बार तो अदालत में जिरह भी खुद करता था । पता नहीं ढिलाई कहां हुई। पुलिस, सीबीआई अथवा स्वयं अदालत के स्तर पर मगर निठारी जैसे दुनिया के सर्वाधिक जघन्य कांडों में से एक में किसी को सजा न मिल सके तो भला हमारी व्यवस्था के लिए इससे अधिक बुरा और क्या होगा।