दीपावली भारत के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक है। निश्चित तौर पर यह हर परिवार और हर व्यक्ति के जीवन पर हर साल कुछ ना कुछ असर डालता ही है। अभी हाल ही में रामलीला, गणेश उत्सव भी मनाए गए। याद रखने की जो बात मैं कह रहा हूं वह यह है कि हमारे सांस्कृतिक या त्यौहार के समारोह होते हैं उनमें आर्थिक सहयोग कौन लोग करते हैं। धनराशि का सहयोग देने वाले आपके अपने मुहल्ले के अपनी कालोनी के वह लोग होते हैं जो छोटा मोटा व्यापार करते हैं या दुकान चला रहे हैं। कभी किसी मल्टीनेशनल कंपनी ने, अमेजन ने, कैडबरी ने क्या आपके त्यौहार या सांस्कृतिक समारोह में सहयोग किया है क्या? फिर कुछ मीठा हो जाए तो इसके लिए पेठे की मिठाई खा लें, गुड खा लें, बेसन का लड्डू खा लें, सोन पापड़ी खा लें, इसके लिए कैडबरी ही क्यों खाएं। प्राचीन समय से ही हिन्दू परंपरा में त्यौहार पर एक दूसरे का सहयोग किया जाता है। परस्पर सामंजस्य से एक दूसरे को साथ लेकर त्यौहार मनाया जाता रहा है। अगर कहीं किसी के पास कुद अभाव है तो आस पास के लोग त्यौहार पर उसे इसका अहसास तक नहीं होने देते थे। हमने तो गांवों में करवा चौथ और अहोई पर उन घरों में दही मटठा भेजते देखा है जिन घरों में पशु दूध नहीं दिया करते थे। लेकिन आज त्यौहार हमारे हैं और करोड़ों के वारे न्यारे विदेशी कंपनियां कर रही हैं। मुहल्ले के दुकानदार के पास त्यौहार मनाने के लिए साधन नहीं हैं और हम ऑनलाइन शापिंग करके विदेशी कंपनियों का टर्न ऑवर बढ़ाने में लगे हुए हैं। किसी मॉल से लडिय़ां खरीदने के बजाए किसी नुक्कड पर बैठी महिला या बच्चे से कुछ दीये खरीद लेंगे तो आप पर शायद कोई फर्क ना पड़े मगर शायद इससे उनका त्यौहार मन जाएगा। इस बार ब्राडेंड कपड़े खरीदने के बजाए मुहल्ले के दर्जी से कपड़े सिला कर देख लें आपके ऐसा करने से शायद उसका त्यौहार भी अच्छा मन जाए। मंहगे उपहार बांअने के बजाए गरीब बच्चों को स्टेशनरी दे दें। पास की किसी झुग्गी झौपड़ी में कुछ दीये और थोड़ी सी मिठाई दे आएं। यकीन मानइए आपको त्यौहार मनाने के असली खुशी का अहसास हो जाएगा। ध्यान रखें कि आपके आसपास अगर सभी खुश हैं तो आप असल में त्यौहार मना रहे हैं। अन्यथा आप अपने घर में बैठकर चिलगोजे खा लो, कौन पूछ रहा है? असली मजा तो अपनो के साथ है।