गाजियाबाद, गौतमबुद्घनगर, हापुड़, मेरठ, बागपत, बड़ौत, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, सहारपुर आदि ये अनेक ऐसे जिले हैं जहां समाजवादी पार्टी नजर आनी बंद हो चुकी है। या यूं कहें कि पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी कहीं दिख नहीं रही है तो यह भी गलत नहीं होगा। एक दौर था जब पश्चिम उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की तूती बोलती थी। हमने अकेले गाजियाबाद में ही सपा के जेल भरो आंदोलन की सफलता देखी है, सडक़ों पर सपा कार्यकर्ताओं का संघर्ष देखा है। जनता के लिए सपा को सत्ता के विरूद्घ आवाज बनते देखा है। मगर अब ऐसा कुछ है ही नहीं। पार्टी कार्यालय पर बैठक या कोई आयोजन होता है तो किसी खास दिन या केवल औपचारिकता के लिए। राष्टï्रीय लोकदल किसानों की आवाज उठा भी रहा है मगर उसमें भी किसी सपा नेता की शिरकत नहीं होती। बिजली विभाग टयूबवैल पर मीटर लगाने को अमादा है, किसान इसका विरोध कर रहे हैं, मगर समाजवादी पार्टी समेत कोई विपक्षी दल इस मुद्दे पर किसानों का साथ देने को तैयार नहीं है। कुछ बीघा जमीन को सींचने के लिए घंटो तक टयूबवैल चलानी पड़ती है। इसके लिए कितना भुगतान किसान को करना पड़ेगा इसका अंदाजा लगाकर ही किसान डर जाता है। ऐसे में समाजवादी पार्टी के नेताओं की चुप्पी समझ से परे है। ऐसा लगने लगा है कि सपा नेताओं को एयर कंडीनर कमरे और गाड़ी की आदत हो गई है। सडक़ पर उतरना, जनता की आवाज उठना सपा ने बंद ही कर दिया है। क्या ऐसे माहौल में सपा आगामी लोकसभा चुाव की तैयारी कर रही है। पार्टी कार्यालय खाली होने लगे हैं। सपा नेतृत्व को जिला स्तर पर संगठन के पेंच कसने की जरूरत है। अगर सपा नेतृत्व इस पर ध्यान नहीं देगा तो नुकसान उठाना ही पड़ेगा। सपा के वर्तमान, पूर्व विधायक भी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। संगठन का अता पता ही नहीं है।