करहेड़ा, अटौर, असालतपुर आदि कई गांवों में बाढ़ जैसे हालात चल रहे हैं। पानी खेतों से लेकर घरों तक में घुस गया है। दो किशोर और एक महिला की डूबने से मौत हो चुकी है। जानवरों और मवेशियों की हालत बहुत बुरी है। कितने पशु पक्षी मरे हैं इसका आंकडा तो किसी के पास हैं ही नहीं। अब बताया जा रहा है कि डूब क्षेत्र में घर बनाने से हालात ज्यादा खराब हुए हैं। अगर डूब क्षेत्र में अवैध निर्माण किए गए हैं तो इसका दोषी कौन है? इस सवाल का जवाब कौन देगा? कोई भी व्यक्ति किसी भी कालोनी में अपने घर के बाहर एक बोरी सीमेंट डाल के देख ले, तुरंत जीडीए के लोग पहुंच जाते हैं। फिर इतनी बड़ी तादाद में अवैध मकान कैसे बन जाते हैं? इसकी खबर जीडीए को क्यों नहीं लगती? जीडीए में तकरीबन दस प्रवर्तन विभाग हैं, इनमें कितने ही कर्मचारी काम करते हैं। मगर उनको नदी किनारे होने वाले अवैध निर्माण नहीं दिखाई देते। जीडीए उपाध्यक्ष ने क्या प्रवर्तन विभाग केे किसी अधिकारी या कर्मचारी से इस बारे में सवाल जवाब किया है? गरीब आदमी तो एक मकान के लालाच में मारा जाता है। मगर जो लोग सरकारी जमीन को बेच कर गरीब आदमी को फंसा देते हैं उन पर कोई कार्रवाई हुई क्या? करहेड़ा से लेकर असालतपुर तक कितने ही लोग कालोनी काटने में लगे हुए हैं कभी किसी ने जाकर देखा है कि जिस जमीन पर कालोनी काटी जा रही है वह किसकी है? सरकारी जमीन बिकती रहती हैं, अवैध कालोनियां बनती रहती हैं, मगर तक किसी को कुछ दिखाई नहीं देता। बरसात तो अपने समय पर होगी ही, नदियों में तो पानी आएगा ही, हम नदी का रास्ता रोकेंगे तो पानी तो अपना रास्ता बनाएगा ही। इसमें प्रकृति का कोई दोष नहीं है। दोष अफसरशाही का है, नीति निर्धारकों का है। हिंडन नदी में आज जलकुंभी दिखाई दे रही है। अगर समय पर हिंडन की सफाई की जाती होती तो शायद आज इतनी मुसीबत ना उठानी पड़ती। इस बारे में भाजपा नेता कामेश्वर त्यागी ने गाजियाबाद के जिला प्रभारी मंत्री को पत्र भी लिखा है। मगर इस पत्र पर कोई एक्शन लिया जाएगा, इस पर यकीन तो बिलकुल नहीं है। क्योंकि हमको तो लकीर पीटने की आदत पड़ी हुई है।