नगर संवाददाता
गाजियाबाद (युग करवट)। कोविड काल में लगे लॉकडाउन ने बहुत लोगों की जिंदगी बदल दी थी। किसी की नौकरी गई तो किसी ने अपनों को खो दिया। लॉकडाउन के दौरान लोगों को कई समय भूखा तक रहना पड़ा और बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ा। इसी त्रासदी ने कुछ लोगों के मन में पीडि़तों लिए कुछ करने का जज्बा जगाया। उन्हीं लोगों में से एक हैं कविनगर निवासी साथी फाउंडेशन की अध्यक्ष व समाजसेवी काजल छिब्बर। काजल छिब्बर ने शुरुआत तो मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को लॉकडाउन के दौरान खाना खिलाने से की थी, लेकिन इसके बाद वह लगातार लोगों को न सिर्फ खाना उपलब्ध करा रही हैं, बल्कि उनकी हेल्थ, स्किल डेवेलपमेंट पर भी काफी काम कर रही हैं। काजल छिब्बर ने अपने अनुभव युग करवट के साथ साझा किए।
* आपके फाउंडेशन की शुरुआत कैसे हुई थी
पहले से इसके बारे में कोई प्लांिनंग नहीं थी। कोविड काल में लगे लॉकडाउन के दौरान जब मैं और मेरे पति घर से ही काम कर रहे थे। एक दिन पति ने कहा ने मुझसे कहा कि क्या वह कुछ लोगों के लिए खाना बना सकती हैं जिसे उनमें वितरित किया जा सके। पति की बात सुनकर उन्होंने अपने एक दोस्त से बड़ा बर्तन और भट्टी मंगाई। मैने अगले दिन अपने कविनगर स्थित घर से ३० जरूरतमंद लोगों के लिए खाना बनाया और उन तक पहुंचाया। यह सिलसिल लॉकडाउन के दौरान लगातार जारी रहा। बाद में ऑफिस वर्क फिर से शुरू हो गया, लेकिन मैने जरूरतमंदों के लिए कुछ करने की ठानी और फिर से ऑफिस ज्वॉइन नहीं किया।
* शुरुआत में कितने लोग आपके एनजीओ से जुड़े
मैंने अपनी संस्था २५ लोगों के साथ रजिस्टर्ड कराई थी। अप्रैल २०२१ में फाउंडेशन की नींव रखी और उसका नाम रखा ‘साथी फाउंडेशन’ जो हमें सीधा लोगों से जोड़ता है। १६ वॉलिटिंयर्स भी हमारे साथ हैं जो लोगों तक खाना पहुंचाने का काम करते हैं।
* आपका फोकस सबसे अधिक खाने पर ही क्यों रहता है
ऐसा नहीं है, लेकिन हमने शुरुआत खाना वितरण से ही थी। अब हमारा मकसद लोगों को विशेषकर बच्चों को सिर्फ खाना उपलब्ध ही नहीं, कराना बल्कि उन्हें पौष्टिक भोजन भी भरपेट उपलब्ध कराना है। मैं नाम के लिए, बल्कि इसलिए काम कर रही हूं ताकि लोगों की कुछ मदद कर सकूं।
* दूसरी एनजीओ का साथ क्यों नहीं लिया
मैं भीड़ का हिस्सा नहीं हंू, मेरा फोकस क्वॉलिटी पर रहता है। मेेरा मकसद खाना खिलाकर फोटो सेशन कराना नहीं। लोग नाम के लिए सस्ता खाना खिलाकर काम चला रहा हैं, जबकि मेरी प्राथमिकता बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध ही कराना है। इसके लिए मैं खुद अच्छा रॉ मैटेरियल एकत्र करती हंू, मैं बच्चों की सेहत से कोई खिलवाड़ नहीं कर सकती।
* इसके अलावा आपकी संस्था और क्या कार्य कर रही है
हम निपुण भारत अभियान के तहत सरकारी स्कूल में पढऩे वाले बच्चों को विभिन्न एजुकेशनल गतिविधियां कराते हैं। इसके अलावा इन बच्चों के लिए भी समय-समय पर बेहतर खाना उपलब्ध कराते हैं। उनके लिए खेल-खेल में एक्टिविटीज कराते हैं। हमारी संस्था नेहरू युवा केंद्र के साथ जुडक़र भी लोगों को जागरूक करने का काम करती है।
* महिलाओं के लिए क्या योजनाएं हैं
महिलाओं व मलिन बस्तियों में रहने वाली लड़कियां रोजगार में सक्षम हो सके इसके लिए विवेकानंदनगर में स्किल सेन्टर पिछले एक साल से चलाया जा रहा है। यहां करीब साढ़े चार सौ महिलाओं को अब तक सिलाई व क्रौशिया दो बैच में सिखाया जा रहा है, एक बैच में २५ लड़कियां शामिल होती हैं।
* स्वास्थ्य के क्षेत्र में संस्था क्या कार्यक्रम चला रही है
वर्तमान में हमने ७५ टीबी रोगियों को गोद ले रखा है जिन्हें हर महीने पौष्टिक किट प्रदान करते हैं। इससे पूर्व में दो सौ टीबी रोगियों को गोद लिया गया था, जो अब पूरी तरह से ठीक हैं। अभी यह संख्या और बढऩे वाली है। इसके अलावा स्वास्थ्य व हाइजिन के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए शिविरों का आयोजन करती है जिससे लोग अपना ध्यान रख सकें।
* संस्था के लिये फंड की व्यवस्था कैसे होती है
मैं किसी से भी फंड नहीं ले रही, बल्कि मैने शुरुआत में अपने परिवार से भी इस बात को छिपा कर रखा कि अपनी सारी जमा पूंजी मैने समाजसेवा के कार्य में लगा दी। अपनी जॉब करके जो पैसा मैने सेव किया था, अब मैं उसे खर्च कर रही हूं। यहां तक की पैसा बचाने और लोगों की मदद करने के लिए ऑटो का इस्तेमाल करती हंू जिससे उन्हें भी रोजगार मिल सके।
* फैमिली का सपोर्ट कैसा रहा
इस काम की शुरुआत एक तरह से पति के प्रोत्साहन से हुई थी। इसलिए पति ने कभी रोका-टोका नहीं, लेकिन उससे भी बड़ी बात कि मेरी मां ने मुझे सबसे अधिक सपोर्ट किया है। वह हमेशा मुझे प्रोत्साहित करती हैं। एनजीओ के काम की वजह से काफी बाहर रहना पड़ता है, ऐसे में वह पूरा परिवार संभाल लेती हैं।
* आगे क्या योजनाएं हैं आपके फाउंडेशन की
मैं एक ओल्डएज होम और अनाथ आश्रम खोलना चाहती हंू, लेकिन यह आश्रम नहीं, बल्कि बेसहारा लोगों के लिए अपने घर जैसे होगा। मैं अभी भी नियमित रूप से आश्रम में विजिट करती हंू, उनके साथ समय बिताती हंू जिससे उनके लिए कुछ बेहतर कर सकूं। इसके अलावा गांवों में भी स्किल सेन्टर खोलना हैं जिससे वहां की महिलाओं को आत्मनिर्भर बना सकूं।