गाजियाबाद के कौशांबी स्थित होटल रेडिसन के मालिक करण जैन ने रिपोर्ट दर्ज कराई है कि कुछ लोगो ने उनके होटल में घुसकर बलवा किया। उन्हें जान से मारने की धमकी दी। इस रिपोर्ट की खास बात यह है कि इसमें लिखा गया है कि आरोपी गौरव अग्रवाल राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल के रिश्तेदार हैं। इसमें यह भी लियाा है कि राज्यसभा सांद अनिल अग्रवाल ने उनको फोन किया और कहा कि उन लोगों मतलब बलवा करने वालों से बातचीत कर लो अन्यथा वो उन लोगों को रोक नहीं पाएंगे और ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। अब सवाल राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल से है कि इस भाषा का मतलब क्या है? क्योंकि साधारण रूप से यह भाषा समझाने की तो नहीं है। अगर यह भाषा धमकाने की है तो क्या किसी जनप्रतिनिधि को इस तरह से बात करने का अधिकार है? होना तो यह चाहिए था कि राज्यसभा सांसद पहले आरोपियों को वहां से जाने के लिए कहते। फिर दोनों पक्षों की बात सुनते और जिसकी गलती निकलती उसे ऐसा नहीं करने के लिए समझाते। मगर इस तरह कानून हाथ में लेने वालों का सीधा सीधा पक्ष लेकर राज्यसभा सांसद जनता को किस तरह का संदेश देना चाहते हैं। यह समझ से परे है। अगर विवाद संपत्ति का भी है तो भी किसी के दफ्तर में इस तरह घुस कर स्टाफ को आतंकित करने, सातवें तल से फेंक देने की धमकी देने का क्या मतलब है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि माफियागिरी बर्दाश्त नहीं करेंगे। जबकि भाजपा के राज्यसभा सांसद एक तरह से कानून हाथ में लेने वालों का साथ दे रहे हैं। हालांकि राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल इसे अपने साथ हुई साजिश बता रहे है, लेकिन इस पूरे मामले का जनता के सामने सच तो आना ही चाहिए था कि आखिर इस तरह फोन करके ऐसी बातें करने का उनका मकसद क्या था। क्योंकि अगर सांसद उनको रोक नहीं पाएंगे तो वो क्या क्या कर सकते थे या आगे कर सकते हैं, इस बारे में भी पता चल जाता। वैसे भी अगर यह सब हुआ है तो हमारे जनप्रतिनिधि गाजियाबाद को किस तरफ ले जाना चाहते हैं। क्या इसे फिर से जिला गाजियाबाद बनाने का मन है?